मित्रता कैसे टूटे? (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर के पुत्र शहजादा सलीम तथा दिल्ली के एक व्यापारी के पुत्र की आपस में गहरी मित्रता हो गई थी| वे दोनों अक्सर सारा-सारा दिन साथ ही बिताते थे| जिस कारण दोनों के ही पिता परेशान थे| व्यापारी के पुत्र ने मित्रता के कारण व्यापार में ध्यान देना छोड़ दिया था तथा शहजादा सलीम भी राज-काज की तरफ ध्यान नहीं देता था|
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एक दिन दरबार में बादशाह अकबर तथा वह व्यापारी इन दोनों की मित्रता से होने वाली परेशानियों का जिक्र कर रहे थे कि वहां बीरबल भी आ पहुंचा| बीरबल को देखकर बादशाह अकबर बोले – “बीरबल, अब तुम ही इन दोनों की दोस्ती को तोड़ सकते हो|”
“हुजूर, वैसे तो किसी की दोस्ती में खलल नहीं डालना चाहिए| पर यह बात मैं जानता हूं कि इन दोनों की दोस्ती का जुनून काफी बढ़ गया है और इसे रोकना जरूरी है| हुजूर, आप कल दोनों को दरबार में उपस्थित होने का निर्देश दें|”
बादशाह अकबर ने वैसा ही किया और अगले दिन दरबार में दोनों मित्र उपस्थित थे| कुछ देर तक दरबारी कार्यवाही चलती रही| फिर अचानक बीरबल उठा और व्यापारी पुत्र के कान में धीरे से कुछ कहा, जो उसकी समझ में नहीं आया| वास्तव में बीरबल ने उसके कान में कुछ कहा ही नहीं, केवल कान के पास मुंह ले जाकर फुसफसाया था| इसके बाद बीरबल ने कुछ ऊंची आवाज में चेतावनी देते हुए व्यापारी पुत्र से कहा – “मैंने जो बात तुमसे कही है, उसे राज ही रखना, किसी से भी नहीं कहना|”
यह बात बीरबल ने इतनी जोर से कही थी कि शहजादा सलीम भी सुन ले| दरबार समाप्त होने के बाद सलीम ने अपने मित्र से पूछा – “मित्र, बीरबल ने तुम्हारे कान में क्या कहा था?”
अब बीरबल ने उसके कान में कुछ कहा होता तो वह बताता| मित्र ने सलीम से बहुत कहा कि बीरबल ने उसे कुछ नहीं बताया किन्तु उसे विश्वास नहीं हुआ| सलीम को लगा कि वह बात राज रखने के कारण ही उसे नहीं बता रहा| इसी को लेकर उनमें मन-मुटाव हो गया और मित्रता भी खत्म हो गई और दोनों ही अपने-अपने काम में ध्यान देने लगे|
हमेशा की तरह बादशाह अकबर इस बार भी बीरबल की चतुराई की प्रशंसा किए बगैर न रह सके|