मायावी तपस्विनी
एक दिन राजा हरिश्चंद्र वन में आखेट के लिए गए हुए थे| तभी उनके कानो में किसी की पुकार सुनाई दी, “मेरी रक्षा करो..मेरी रक्षा करो राजन!”
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राजा हरिशचंद्र ने आगे बढकर देखा कि एक युवा तपस्विनी अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर रोते हुए रक्षा करने की दुहाई दे रही है| राजा ने दाएं-बाएं नजरे दौड़ाई,लेकिन उन्हें वंहा कोई अन्य व्यक्ति दिखाई न दिया| तब राजा ने हैरान होकर तपस्विन से पूछा, “कौन पापी आपको कष्ट पंहुचा रहा है? मेरे राज्य में किसका इतना साहस जो अपने वस्त्रो में आग बांधना चाहता है? मेरे ये नुकीले बाण अभी उसे मौत की नीद सुला देंगे!”
उस युवा तपस्वनी ने कहा, “राजन! यंहा से थोड़ी दूर पर एक तपस्वी घोर तप करके मेरी सारी सिध्हियों को मुझसे छीन रहा है| मै उसी से भयभीत होकर रक्षा की पुकार कर रही हूं|”
“तुम डरो मत और निर्भय होकर तप करो|” राजा ने कहा, “मैं उसे अभी देखता हूं|”
यह कहकर राजा वहां से चला गया| उसके जाते ही तपस्विनी अन्तर्धान हो गई|