मनपसंद वस्तु (बादशाह अकबर और बीरबल)
एक सुनार के मकान में आग लग गई| अब बहुत भयंकर थी, सबकुछ धू-धू कर जल रहा था| सुनार असहाय खड़ा देख रहा था| तभी उसने जोर से कहा – “भाईयों, इस मकान के अन्दर मेरी जिंदगीभर की कमाई के लाखों के जेवर एक बक्से में पड़े हैं, कोई तो उसे निकाल लाओ|”
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यह बात सुनकर एक महाजन आगे आया और कहा – “मैं तुम्हारे जेवरों का बक्सा निकाल लाऊंगा, किन्तु शर्त यह है की मैं अपनी मनपसंद वस्तु तुम्हें दे दूंगा और बाकी सबकुछ अपने पास रख लूंगा|”
सुनार ने सोचा, सबकुछ बरबाद होने से तो कुछ मिलना बेहतर है…सो उसने हामी भर दी|
महाजन आग में कूद गया और अन्दर से जेवर के बक्से को निकाल लाया और सारे जेवर स्वयं रखकर खाली बक्सा सुनार को सौंप दिया|
अब सुनार को यह बात कहां मंजूर होती कि कोई उसकी जिन्दगीभर की कमाई यूं ही ले जाए| सो बात बढ़ गई और फैसले के लिए उन्हें दरबार में आना पड़ा|
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अकबर ने बीरबल से न्याय करने को कहा|
बीरबल ने महाजन से पूछा – “तुमने क्या शर्त रखी थी… एक बार फिर बताओ?”
“हुजूर, शर्त यह थी कि मैं अपनी मनपसंद वस्तु सुनार को देकर बाकी सबकुछ अपने पास रख लूंगा|” महाजन ने कहा|
“और यकीनन तुम्हारी मनपसंद वस्तु यह सारे जेवर ही होंगे?” बीरबल ने पूछा|
“जी हां… हुजूर…|” महाजन ने तुरन्त जवाब दिया|
“तो हो गया फैसला… तुम अपनी मनपसंद वस्तु सारे जेवर सुनार को सौंप दो और खाली बक्सा अपने पास रख लो|”
महाजन समझ गया कि वह अपनी ही बातों के जाल में फंस गया है| फैसला हो चुका था, अत: महाजन को सारे जेवर सुनार को लौटाने पड़े|
बीरबल के न्याय से बेहद खुश हुए बादशाह अकबर|