ममता से बड़ा कर्तव्य
“हाँ देवी|” हरिश्चंद्र ने जैसे छाती पर पत्थर रखकर कहा, “लेकिन मै कर्तव्य से विवश हूं|श्मशान का कर तुम्हें चुकाना ही होगा|”
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“पर मैं कर कहां से दूं स्वामी? आप देख ही रहे हैं कि मैंने पहले ही अपनी आधी साड़ी फाड़कर अपने पुत्र के मृत शरीर को ढका हुआ है|” रानी ने कातर स्वर में कहा|
“तुम चाहो तो अपनी साड़ी का आधा भाग कर के रूप में चूका कर अपने पुत्र का दाह कर सकती हो|” हरिश्चंद्र बोले, “किन्तु बिना कर चुकाए मै तुम्हें इसको जलाने नहीं दूंगा| मेरे स्वामी का ऐसा ही आदेश है|”
रानी का हाथ अपनी साड़ी की ओर बढ़ा, तभी एक अनहोनी-सी बात हो गई| पीछे से एक हाथ ने शैव्या का हाथ पकड़ लिया|