महात्मा का चमत्कार
किसी नगर में एक दुकानदार था| उसकी कपड़े की दुकान थी| वह बड़ा ही ईमानदार था और अपने ग्राहकों के साथ उसका व्यवहार बड़ा अच्छा रहता था| इसलिए उसकी दुकान खूब चलती थी|
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अचानक दुकानदार के सामने एक कठिनाई आ गई| उसका छोटा लड़का उसके साथ दुकान पर बैठता था| जाने कहां से उसको आदत पड़ गई कि दुकान पर जो भी खरीदार आता, वह उसकी टोपी या पगड़ी उतारकर फेंक देता| दुकानदार ने उसे बहुतेरा समझाया, डराया-धमकाया, मारा-पीटा, लेकिन उसने अपनी आदत न छोड़ी| धीरे-धीरे लोगों ने उसकी दुकान पर आना कम कर दिया|
दुकानदार बहुत ही परेशान हो गया| अब वह क्या करे? लड़के की मां गुजर चुकी थी, इसलिए घर पर अकेले उसे छोड़ भी नहीं सकता था|
संयोग से एक दिन उसे एक महात्मा मिले|
उसने अपनी परेशानी उन्हें बताई – “महात्माजी, आप जैसे बने, इस लड़के को ठीक कर दीजिए| मैं आपका बड़ा अहसान मानूंगा|”
महात्मा ने सारी बात सुनकर कहा – “मैं तुम्हारे लड़के को ठीक तो कर दूंगा, लेकिन एक शर्त है|”
दुकानदार ने पूछा – “क्या?”
वे बोले – “मैं या तुम्हारा बालक जो करें तुम उसमें रोक-टोक नहीं करोगे|”
दुकानदार राजी हो गया|
अगले दिन महात्मा अपने सिर पर एक साफा बांधकर उसकी दुकान पर आए| लड़का तो ताक में था ही, जैसे ही महात्मा बैठे कि वह उठा और उनका साफा उतारकर सड़क पर फेंक दिया|
महात्मा ने हंसकर कहा – “शाबाश बेटे!” उन्होंने उसे पुचकारा और कहा – “जरा दौड़कर साफे को उठा तो लाना|”
लड़के ने छलांग लगाई और साफा उठाकर ले आया|
महात्मा ने कहा – “मेरे सिर पर इसे बांध दो|”
लड़के ने उसे उल्टा-सीधा उनके सिर पर लपेट दिया| दूसरे दिन महात्मा फिर उसकी दुकान पर आए| उनके सिर पर साफा था, पर वे दुकान के सामने एक लकड़ी का बोटा और छोटी कुल्हाड़ी डाल आए थे| दुकान पर आते ही उन्होंने लड़के को अपने पास बुलाया और कहा – “बेटा उस कुल्हाड़ी को उठाकर जरा लकड़ी के टुकड़े कर देना|”
दुकानदार ने सुना तो वह बड़ा घबराया| कहने को हुआ कि महाराज, आप यह क्या करवा रहे हैं? लड़का अपना पैर काट लेगा, पर वह कुछ न बोलने का वचन जो दे चुका था|
लड़के ने कूदकर कुल्हाड़ी उठा ली और लकड़ी को काटने लगा| वह थोड़ी ही देर में थककर लौट आया और महात्मा के पास बैठ गया|
महात्मा ने सात दिन तक उससे कुछ-न-कुछ कराया| उसके बाद बच्चे की साफा उतारने की आदत एकदम छूट गई|
दुकानदार चकित रह गया| उसने महात्मा से कहा – “आपने यह क्या चमत्कार कर दिया?”
महात्मा बोले – “हम लोग दिन-भर में बच्चे से बीसियों बार कहते हैं, यह मत कर, वह मत कर लेकिन एक बार भी यह नहीं कहते यह कर| बालक कुछ करना चाहता है| तुमने देखा, जब-जब मैंने तुम्हारे लड़के से कुछ करने को कहा, उसने कितने आनंद से उस काम को किया|”
दुकानदार ने अपनी भूल समझी और उस दिन से उसका खोया बालक उसे मिल गया|