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महाभारत की रचना

प्राचीन काल की बात है| व्यास नाम के एक वृद्ध पुरुष भारत भूमि पर रहते थे| व्यास बहुत ही बुद्धिमान और विद्वान थे| वे सदा चिंतन-मनन में लगे रहते थे| ऋषिवर व्यास भिन्न-भिन्न विषयों पर गहराई से सोच-विचार किया करते थे|

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हिंदू पुराण-शास्त्रों में कई देवी-देवताओं जैसे-सूर्य, अग्नि, वायु, यम, इंद्र, ब्रम्हा आदि का वर्णन आता है|व्यास ने संसार के रचयिता ब्रह्मा का ध्यान किया| उन्होंने इस संसार, यहां रहने वाले लोगों तथा उनके गुणों और अवगुणों पर विचार किया| बहुत सोच-विचार के पश्चात उनके मस्तिष्क में एक कथा विकसित हुई| यह कथा बहुत लंबी थी जो एक राजा, उनके राज्य और उनके परिवार के विषय में थी| इस कथा में कई युद्धों का वर्णन था जो राजाओं और उनके पुत्रों द्वारा लड़े गए थे|

व्यास इस कथा की रचना करना चाहते थे, परन्तु उन दिनों लिखना-पढ़ना सबके लिए संभव नहीं था| अतः व्यास ने पुनः विचार किया| इस समस्या का समाधान करने के लिए उन्होंने जगत-रचयिता ब्रह्मा का ध्यान किया| ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए| व्यास ने कहा, “हे संसार के महान रचयिता, मेरे मन और मस्तिष्क में एक ऐसी कथा ने जन्म लिया है जिसकी घटनाएँ आगामी समय में घटित होकर उस युग का नाम ही परिवर्तित कर देंगी| इस कथा का नाम होगा, ‘महाभारत’| परन्तु उस कथा को लिखने में मै असमर्थ हूँ| कृपया आप इस समस्या का समाधान करें|”

ब्रह्मा ने उत्तर दिया, “गणेश से विनती करो, वे ही तुम्हारी सहायता कर सकते हैं|”

गणेश की पूजा-अर्चना हमेशा कार्य की सफलता के लिए की जाती है| व्यास ने गणेश का ध्यान किया और गणेश ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए| व्यास बोले, “भगवन! आपके दर्शन पाकर मै धन्य हुआ|” गणेश ने कहा, “तुम्हारी भक्ति-भावना से मै प्रसन्न हूँ, कहो क्या समस्या है?”

व्यास बोले, “भगवन! मेरे मन और मस्तिष्क में एक कथा ने जन्म लिया है, जिसे मै महाभारत का नाम देना चाहता हूँ| परन्तु एक समस्या है कि मै उस कथा का लिखित रूप नहीं दे पा रहा| कृपया आप मेरी कथा को लिखकर मेरी समस्या का समाधान करें|”

गणेश ने कुछ क्षण विचार किया, फिर बोले, “मै तुम्हारी कथा अवश्य लिख सकता हूँ, पर एक शर्त से है| यदि तुम बिना रुके अपनी कथा का आरंभ से अंत तक मुझे सुना सको, तभी मैं उसे लिखूंगा|”

गणेश की कठिन शर्त से व्यास सहमत हो गए| परंतु उन्होंने मन ही मन सोचा, “यदि मैंने थोड़ा भी संकोच किया तो गणेश यह कथा लिखने से मना कर देंगे और मेरा संपूर्ण चिंतन व्यर्थ हो जाएगा|” उन्होंने गणेश से कहा, “मै आपकी शर्त से सहमत हूँ परंतु आप भी उस समय तक कुछ न लिखें जब तक कि मेरे कथन का अर्थ पूर्णतः न समझ जाएँ| जब आपको मेरे कहे का अर्थ स्पष्ट हो जाए तभी आप उसे लिखें|”

व्यास ने पूछा, “क्या यह उचित होगा?” गणपति हँस पड़े और सिर हिलाकर हामी भार दी| उस विद्वान, वृद्ध पुरुष ने अपने मस्तिष्क में महाभारत की जो कथा सँजो रखी थी, उसे इस तरह से लिखित रूप मिला|

निश्चय ही महाभारत की कथा अद्भुत है| इसे महाकाव्य कहा जाता है| इस महाकाव्य में सुंदर श्लोकों द्वारा वीर और साहसी नर-नारियों का चरित्र दर्शाया गया है| महाभारत की कहानी लंबी और कठिन है| जब कभी व्यास को कहानी के पात्रों या घटनाओं के क्रम के बारे में सोच-विचार करने की आवश्यकता होती, वे कुछ कठिन श्लोक कहते और जब तक गणपति उन श्लोकों के अर्थ को समझ पाते, तब तक व्यास को सोचने का समय मिल जाता| और वे पुनः कथा आरंभ कर देते|

जैसे कि तुम जानते हो, उस समय हमारा समाज चार वर्णों में विभाजित था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र| ब्राह्मणों को सबसे उंची जाति का मना जाता था| वे बहुधा विद्वान होते थे और सभी उनका आदर करते थे| राजा और राजकुमार मुख्यतः क्षत्रियों की श्रेणी में आते थे| क्षत्रिय, वीर और बहुत ही अनुशासन प्रिय होते थे तथा हमेशा कमजोरों की रक्षा करते थे| किसी की ललकार का उत्तर ने देकर पीठ दिखाना अथवा अपने दिये हुए वचन का पालन न करना उसके लिए लज्जा की बात मानी जाती थी| युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त करना उनके लिए उच्चतम सम्मान गिना जाता था| वैश्य जाति के लोग सौदागर और व्यापारी होते थे| शुद्र वर्ग के लोग समाज के लिए मेहनत-मजदूरी करते थे|

महाभारत मुख्यतः पांडु और धृतराष्ट्र नामक दो क्षत्रिय राजाओं की कथा है जो आपस में भाई थे| पांडू के पांच पुत्र थे, धृतराष्ट्र के सौ पुत्र और एक पुत्री थी| पांडु के पुत्र पांडव और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव के नाम से जाने जाते थे| कौरव, पांडवों से घृणा करते थे और सदैव उन्हें मार डालने की ताक में रहते थे| परंतु पांडव अच्छे, दयालु स्वभाव के थे इसलिए कौरवों को क्षमा कर देते और सदा वीर साहसी राजकुमारों की तरह व्यवहार करते थे| अंत में इन्हीं पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र में महायुद्घ हुआ|

प्राचीन काल में लेखन या मुद्रण के साधन नहीं थे इसलिए लोगों को सभी बातें कंठस्थ करनी पड़ती थीं| प्रायः पिता अपने जीवन में सीखी गई बातों का ज्ञान अपने पुत्र को देता था और पुत्र अपने पुत्र को| यही  श्रृंखला चलती रहती और इसी तरह इतिहास, दर्शन, संगीत और साहित्य के ज्ञान की कड़ी जीवित रहती थी|

व्यास ने महाभारत की शिक्षा सर्वप्रथम अपने पुत्र शुक्र और अन्य शिष्यों को दी| उन्हीं दिनों सूत नाम के एक और विद्वान थे जिन्होंने महाभारत की कथा कंठस्थ की और वन में रहने वाले ऋषियों और विद्वानों की सभा में उसका पाठ किया|

सूत ने विद्वान से कहा, “मै बहुत भाग्यवान हूँ, मैंने महाभारत की कथा सुनी है| यह एक अदभुत रचना है| इससे हमें यह शिक्षा मिलाती है कि प्रत्येक क्षण उचित रीति से कैसा व्यवहार करना चाहिए| महाभारत से हमें ज्ञान होता है कि ‘धर्म’ क्या है, तथा मनुष्य को कब और कैसे किस समय कैसा व्यवहार करना चाहिए| साथ ही यह भी सीख मिलती है कि मनुष्य किस तरह से अकसर अपने कर्तव्यों को भूल जाता है| और यदि वह भूलता नहीं है तो भी लालच, शत्रुता, लालसा, कामवासना और क्रोध की भावनाओं में फंस जाता है| कई मनुष्य ऐसे भी होते है जो बार-बार चेतावनी दिये जाने के कारण बनते हैं| महाभारत नहीं और स्वयं अपने और अपने वंश के पतन का कारण बनते हैं| महाभारत रक्तचाप और घृणा के विरुद्ध अच्छाई, पाप-कर्म, दृष्टता, प्रतिशोध और युद्ध के विरुद्ध दयालुता और वीरता की कथा है| क्या आप इसे सुनना चाहेंगे?”

सभी ऋषि-मुनि उस कथा को सुनने के लिए व्याकुल थे| “हम अवश्य सुनेंगे,” उन्होंने कहा और सभी विद्वान सूत को घेरकर उत्सुकतापूर्वक बैठ गए|

सूत बोले, “मैंने यह कथा सर्व प्रथम राजा जन्मेजय की आज्ञा से दी गई बलि के समय सुनी थी| मुझे इतनी रोचक लगी कि मैंने कथा में वर्णित सभी स्थलों का भ्रमण किया| मै कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि जहां महायुद्ध हुआ था, उसे भी देखने गया| मै आप सबको महाभारत की सम्पूर्ण गाथा सुनाऊंगा|”