मदद न करने पर घोड़े को पछताना पड़ा
एक व्यापारी के पास एक घोड़ा और एक गधा था। वह स्वयं घोड़े पर चढ़ता और गधे पर बोझ लादकर गांव-गांव माल बेचता था। घोड़ा चूंकि उसने ऊंचे दाम देकर खरीदा था, इसलिए उस पर वह बोझ नहीं लादता था और उसका अधिक ख्याल रखता था। एक दिन व्यापारी घोड़े पर चढ़कर और गधे पर बोझ लादकर किसी गांव की ओर जा रहा था।
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गधा बेचारा अत्यंत दुर्बल था, दूसरा उस पर क्षमता से अधिक बोझ लाद दिया गया था। रास्ता भी ऊबड़-खाबड़ था, इसलिए वह एक-एक पैर बड़ी कठिनाई से आगे बढ़ा रहा था, किंतु उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी। उसने घोड़े से कहा- भाई! इस बोझ से तो मेरे प्राण निकले जा रहे हैं। तुम दया कर मेरा थोड़ा सा बोझ ले लो। मैं जीवनभर तुम्हारा उपकार मानूंगा। लेकिन घोड़े ने अहंकार भरे स्वर में कहा- क्या बकता है? हमने कभी बोझ ढोया है, जो आज तेरे कहने से ढोएंगे।
खबरदार, जो फिर ऐसी बात मुंह से निकाली। बेचारा गधा कुछ न बोला, रोते-कलपते पैर उठाने लगा और अंतत: गिर पड़ा और उसका एक पैर टूट गया। व्यापारी ने तत्काल गधे का सारा बोझ घोड़े की पीठ पर लादा और ऊपर से गधे को भी चढ़ा दिया। अब घोड़े का सारा अहंकार हवा हो गया और वह यह सोचकर पछताने लगा कि काश, मैं गधे की बात मानकर उसका थोड़ा सा भार हल्का कर देता। यदि मैं उसकी थोड़ी-सी सहायता करता तो बदले में मेरा ही भला होता और इतना कष्ट तो न उठाना पड़ता। वस्तुत: हम यदि दूसरों की मदद करते हैं तो दूसरे हमारी भी मदद करेंगे अन्यथा संकट में पड़ने की कष्टकारी स्थिति का सामना करना पड़ता है।