कृपण का धन

कृपण का धन

एक समय की बात है| एक कृपण अपने धन को बहुत प्यार करता था| वह खर्च नहीं करता था| उसने अपने धन को सोने में बदल रखा था| घर में रखने से डरता थ, इसलिए बगीचे में घर के पिछवाड़े एक गड्ढे में गाड़ रखा था| कभी-कभी खोदकर, निकालकर आश्वस्त हो लेता कि सोना सुरक्षित है|

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एक दिन जब वह गड्ढा खोदने घर के पिछवाड़े की ओर जा रहा था, तब एक चोर ने उसे देख लिया| उसने कृपण को गड्ढा खोदते, सोना निकालते और पुनः वहीँ  गाड़ते देख लिया| कृपण के वापस लौटने के बाद गड्ढा खोजने की बारी चोर की थी| वह सारा सोना लेकर चम्पत हो गया|

अगली बार जब कृपण ने गड्ढा खोदा और सोना गायब पाया तब जोर-जोर से रो उठा| सभी पड़ोसी और घर वाले वँहा एकत्रित हो गये| मगर अब क्या हो सकता था| एक वृद्ध ने उसे समझाया, “वह धन तुम्हारे लिए बेकार था, क्योंकि तुम उसका उपयोग नहीं कर रहे थे| इसलिए शोक करना व्यर्थ है|”