कौवे ने सांप को पछाड़ा
एक बरगद के पेड़ पर एक कौवे और कौवी ने घोंसला बनाया| वे अपने बाल-बच्चों के साथ उस घोसले में रहने लगे|
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एक दिन एक बूढ़े से काले सांप ने भी उस बरगद के नीचे अपना बिल बना लिया और उसमे रहने लगा| काले सांप का इतना निकट रहना कौवे-कौवी को जरा भी नहीं भाया| पर वे कर भी क्या सकते थे?
कौवी ने अंडे दिये| कुछ दिनो बाद अंडो में से बच्चे निकले| कौवा और कौवी बड़े प्यार से अपने बच्चो को पालने लगे| एक दिन कौवा और कौवी बच्चो के लिए खाना लाने गये हुए थे| काला सांप पेड़ पर चढ़ गया| उसने उनके बच्चों को मारकर खा लिया| कौवा और कौवी जब लौटे और बच्चो को नहीं पाया तो बहुत दुखी हुए| उन्होंने सारे जानवरों और चिडियों से पूछा, लेकिन कोई भी नहीं बता सका कि बच्चे कहां गायब हो गये हैं| दोनों खूब रोये| फिर दोनों ने तय किया कि अगली बार बच्चो को कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे|
कई महीने बीत गये| कौवी ने फिर अंडे दिये| अंडो से बच्चे निकले| इस बार कौवा और कौवी बच्चों की खूब रखवाली करते| एक दाना लाने जाता तो दूसरा बच्चो के पास रहता|
एक दिन कौवी ने देखा कि वही बूढ़ा काला सांप धीरे-धीरे रेंगता हुआ पेड़ पर चढ़ रहा है| वह सांप को भगाने के लिए जोर-जोर से कांव-कांव करने लगी| लेकिन सान्प्को इसका कोई असर नहीं हुआ| वह पेड़ पर चढ़ गया और बच्चों को फिर मारकर खा गया|
कौवी बहुत रोयी| उसके आंसू रुकते ही नहीं थे| उसका रोना-धोना सुनकर बहुत सारे कौवे वहां आ पहुंचे| सबने मिलकर सांप पर हमला करना चाहा, पर सांप तो पहले ही अपने बिल में घुस गया था|
शाम को कौवा लौटा और उसने सुना कि काला सांप फिर बच्चों को खा गया तो वह बहुत दुखी हुआ| सिसकते हुए कौवी ने कहा कि हम लोग इस पेड़ को छोड़कर कहीं और चलते हैं| इस काले सांप ले पड़ोस में रहना ठीक नहीं|
बच्चो के मरने से कौवा भी बहुत दुखी था| उसने कौवी को समझाया| पर कौवी ने एक न सुनी| वह काले सांप के पड़ोस में रहने को राजी न थी|
कौवे ने कहा, “हम इतने सालों से यहां रह रहे हैं| अपने पुराने घर को छोड़ते हुए मुझको तो बहुत बुरा लगेगा|”
कौवी ने कहा, “सो तो ठीक है, पर इस दुष्ट सांप से हमें कौन बचायेगा?”
कौवे ने कहा, “चलो हम सांप को भगाने या मारने की कोई न कोई तरकीब सोचें| लोमड़ी मौसी यंही पास में रहती है| वह बहुत चतुर है| चलो उससे बात करें|”
कौवी ने कौवे की बात मान ली| दोनों लोमड़ी के पास गये और उसे सारी बात बतायी वे बोले, “हमारी मदद करो, मौसी| इस सांप से हमें बचाओ| नहीं तो हमें अपना घर छोड़कर कहीं दूर जाना पड़ेगा|”
लोमड़ी ने कुछ सोचकर कौवे से कहा, “तुम दोनों को अपना घर नहीं छोड़ना चाहिए| तुम दोनों बहुत दिन से यहां रह रहे हो| मैंने सांप को मारने का एक बहुत अच्छी तरकीब सोची है|
“कल सवेरे महल से राजकुमारियां नदी में नहाने जायेंगी| पानी के घुसने के पहले वे अपने गहने और कपड़े उतारकर किनारे पर रख देंगी| उनकी रखवाली करने के लिये उनके साथ नौकर-चाकर भी होंगे|
“तुम दोनों पहले देख आना कि वे गहने कहां रखती हैं| जब कोई देख न रहा हो तो कौवी उनमे से एक मोती का हार उठाकर उड़ जाए| तुम पीछे-पीछे कांव-कांव करते उड़ जाना| खूब जोर से सर मचाना जिससे नौकर-चाकर उसे हार लेकर उड़ते हुए देख लें| वह तुम्हारा पीछा करेंगे| हार काले सांप के बिल में गिरा देना| फिर देखना क्या होता है|”
कौवे ने लोमड़ी की बताई तरकीब मान ली|
दूसरे दिन सवेरे कौवा नदी के किनारे जा पहुंचा| थोड़ी देर में राजकुमारियां वहां आईं| उनके साथ नौकरानियां भी थी| राजकुमारियों ने अपने गहने-कपड़े उतारकर किनारे पर रख दिये और नहाने के लिए नदी में उतर गईं|
कौवा और कौवी देख रहे थे| गहनों में मोतियों की एक माला भी थी| कौवी ने झपटकर चोंच में माला दबाई और उड़ गई| कांव-कांव करता हुआ कौवा भी उसके पीछे-पीछे उड़ चला|
नौकरों ने कौवी को माला उठाते देख लिया| उन्होंने शोर मचाया और उनके पीछे भागे| कौवी ने सांप के बिल में माला गिरा दी और उड़ गई|
नौकरों ने सांप के बिल में माला को गिरते देख लिया| वे डंडो से बिल में से हार निकालने लगे| सांप को छेड़छाड़ अच्छी नहीं लगी| उसे बहुत गुस्सा आया वह बिल के बाहर निकल आया और फैलाकर उन्हें डसने को लपका|नौकरों ने सांप को घेर लिया और लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला| फिर वे माला लेकर चले गये|
कौवा और कौवी पेड़ पर से सब तमाशा देख रहे थे| उन्होंने जब देखा कि उनका दुश्मन काला सांप मार डाला गया है तब उन्होंने सुख की सांस ली|
कौवा और कौवी अपने पुराने घर में सुख से रहने लगे और हमेस्गा लोमड़ी के गुण गाते रहे|