किसान और सारस
एक किसान चिडियों से तंग आ गया था| उसका खेत जंगल के पास था| उस जंगल में पक्षी बहुत थे|
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किसान जैसे ही खेत में बीज बोकर, पाटा चलाकर घर जाता, वैसे ही झुंड-के-झुंड पक्षी उसके खेत में आकर बैठ जाते और मिट्टी कुरेद-कुरेदकर बोये बीज खाने लगते| किसान पक्षियों को उड़ाते-उड़ाते थक गया| उसके बहुत-से बीज चिडियों ने खा लिये| बेचारे को दुबारा खेत जोतकर दूसरे बीज डालने पड़े|
इस बार किसान एक बहुत बड़ा जाल ले आया| उसने पूरे खेत पर जाल बिछा दिया| बहुत-से पक्षी खेत में बीज चुगने गये और जाल में फँस गये| एक सारस पक्षी भी उस जाल में फँस गया|
जब किसान जाल में फँसी चिडियों को पकड़ने लगा तो सारस ने कहा-‘आप मुझपर कृपा कीजिये| मैंने आपकी कोई हानि नहीं की है| मैं न मुर्गी हूँ, न बगुला और न बीज खानेवाला कोई और पक्षी| मैं तो सारस हूँ| खेती को हानि पहुँचाने वाले कीड़ों को मैं खा जाता हूँ| मुझे छोड़ दीजिये|’
किसान क्रोध में भरा था| वह बोला-‘तुम कहते तो ठीक हो, किंतु आज तुम उन्हीं चिडियों के साथ पकड़े गये हो, जो मेरे बीज खा जाया करती हैं| तुम भी उन्हीं के साथ हो| तुम इनके साथ आये हो तो इनके साथ दण्ड भी भोगो|’
जो जैसे लोगों के साथ रहता है, वह वैसा ही समझा जाता है| बुरे लोगों के साथ रहने वालों को भी दण्ड और अपयश मिलता है| उपद्रवी चिडियों के साथ आने से सारस को भी बंधन में पड़ना पड़ा|