कठोरता में कोमलता
किसी जगह डाकुओं का एक दल था| उस दल का सरदार बड़ा खूंखार था| चारों ओर उसका इतना आतंक था कि लोग उसके नाम से थर-थर कांपते थे| एक दिन उसने अपने एक साथी को आदेश दिया कि वह अमुक दिन, अमुक जगह पर मिले| जिस दिन साथी को जाना था, उससे एक दिन पहले उसकी पत्नी बहुत बीमार हो गई, पर सरदार की आज्ञा तो पत्थर की लकीर थी| उसे कौन टाल सकता था| स्त्री को बुरी हालत में छोड़कर वह नियत दिन, नियत स्थान पर पहुंच गया|
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सरदार वहां पहले से ही मौजूद था| साथी के चेहरे पर उदासी देख उसने पूछा – “क्यों क्या बात है? उदास क्यों हो?”
साथी ने सारी बात बता दी| सुनकर सरदार बोला – “अच्छा हुआ, तुम आ गए| लो यह सोना, इसे अमुक जगह, अमुक आदमी को दे आओ, काम खतरे का है पकड़े भी गए तो घबराना मत|”
सरदार ने सोना देकर साथी को विदा किया| उसके बाद पत्थर जैसे दिल वाला वह आदमी सीधा डॉक्टर के पास गया, उसे साथ ले जाकर साथी की रुग्ण पत्नी को दिखाया और उसकी चिकित्सा की अच्छी-से-अच्छी व्यवस्था की जब तक वह ठीक नहीं हो गई सरदार ने चैन नहीं लिया|
संयोग से सोना देते समय साथी पकड़ा गया| उस पर मुकदमा चला और उसे तीन साल के कठोर कारावास का दण्ड मिला| इसका पता चलते ही सरदार अपने साथी की पत्नी के पास गया और गीली आंखों से वह दुखद समाचार सुनाते हुए बोला – “बहन तुम परेशान मत होना| जब तक तुम्हारा आदमी छूटकर नहीं आएगा, तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की देखभाल की सारी जिम्मेदारी हमारी होगी|”
इतना कहकर सरदार ने उनके लिए वे सब सुविधाएं जुटा दीं, जो उन्हें पहले कभी नहीं मिली थीं, जब तक साथी दण्ड की अवधि पूरी करके नहीं आया सरदार उनका उसी ममता से भरण-पोषण करता रहा जिस ममता से वह अपने परिवार का करता था|
लोगों ने अनुभव किया कि पत्थर से कठोर दिल में भी फूल की-सी कोमलता होती है|