कर्ण की मृत्यु
द्रोण की मृत्यु के बाद कर्ण को कौरव सेना के संचालन का भार सौंपा गया| दुर्योधन, द्रोण की मृत्यु से चिंतित था| अश्वत्थामा क्रोधित होकर युद्ध कर रहा था और हवा में अग्नि बाण चला रहा था|
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भीम ने दुशासन से भयंकर युद्ध किया| लड़ते-लड़ते भीम ने उसे धराशायी कर दिया| द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए भीम ने दुशासन का दायाँ हाथ खींचकर उसका हृदय चीर डाला| दुशासन की मृत्यु हो गई| वेग के साथ उसका रक्त बह निकला, और भीम ने रक्तपान कर अपनी शपथ पूरी की|
कर्ण ने नकुल के साथ युद्ध किया| वह उसका वध कर देते लेकिन उन्हें कुंती को दिया गया वचन याद आ गया और उन्होंने उसे छोड़ दिया| कर्ण, युधिष्ठिर और सहदेव का भी वध कर सकते थे वे वचनबद्ध थे| युद्ध का सोलहवाँ दिन था| कर्ण और अर्जुन रणभूमि में आमने-सामने थे| नकुल के मामा राजा शल्य, जिन्हें कौरवों ने कपट से अपनी ओर कर लिया था, कर्ण के सारथी थे|
अर्जुन और कर्ण जब सामने आए तब अन्य सैनिकों ने अपना युद्ध रोक दिया| वे सब इन दो महान योद्धाओं का पराक्रम देखना चाहते थे| प्रश्न था कि विजयी कौन होगा? कर्ण और अर्जुन के मध्य घोर संग्राम होने लगा| कर्ण अपना विशेष अस्त्र गँवा चुके थे पर उन्होंने हिम्मत न हारी| तभी अचानक कर्ण का रथ का पहिया मिट्टी में धँस गया| कर्ण उसे निकालने का प्रयत्न कर रहे थे| उन्होंने अर्जुन को बाण साधते देख, उसे रुकने के लिए कहा| अर्जुन ने अपना धनुष-बाण झुका लिया क्योंकि यही उचित भी था| परन्तु कृष्ण ने कहा, “तुम रुको नहीं, अर्जुन! कर्ण ने उस समय सच्चाई और न्याय का पक्ष नहीं लिया जब वह दुर्योधन के साथ द्यूत के खेल में भाग ले रहा था| और अब भी, जब अकेले अभिमन्यु को सात-सात महारथियों ने मिलकर मारा| तुम, धनुष उठाओ और तीर चलाओ|”
अर्जुन ने अपना धनुष उठाया और लक्ष्य साधा| उधर कर्ण, परशुराम के श्राप के कारण सब शस्त्र ज्ञान भूल गए| पराक्रमी गांडीव से वेग के साथ निकला बाण कर्ण का सिर भेद गया| कर्ण की मृत्यु के साथ ही एक प्रकाश निकलकर स्वर्ग की ओर चला गया| वह प्रकाश जो सूर्य की तरह था| अर्जुन समझ नहीं पा रहे थे कि कर्ण की मृत्यु से उनका मन इतना व्याकुल क्यों था! आँखों में अश्रु लिए वे लौट गए| उन्होंने सोचा, युद्ध कितना विध्वंसकारी और अनावश्यक होता है| पांडवों और कौरवों ने एक-दूसरे को छला था और उनके कारण ही दोनों पक्षों में अनेक निर्दोष लोगों की मृत्यु हो चुकी थी-और हो रही थी|