कपटी न्यायाधीश
एक बहुत बड़े और घने पीपल के तले एक तीतर ने अपना घोंसला बनाया| उस पीपल के इर्द-गिर्द और भी अनेक छोटे-बड़े पशु-पक्षी रहते थे| उन सभी से तीतर की अच्छी मित्रता थी|
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एक दिन वह तीतर अपने घोंसले से खाने की तलाश में निकल पड़ा| बहुत दूर जाने के बाद वह मक्का के एक खेत में जा पहुंचा| मक्का की फसल पक चुकी थी| यह तीतर का मनभाता भोजन था|
दानों की भारमार देखकर तीतर उसी खेत में रुक गया और जी भरकर मक्का खाता रहा| वहां उसने दूसरी बहुत-सी चिडियों से मित्रता कर ली और उनके साथ अपना समय मजे से बिताने लगा| उस दिन वह घर वापस नही आया| दूसरे दिन भी नहीं लौटा| इस तरह वह कई दिन तक उसी खेत में रुका रहा|
जिन दिनों तीतर बाहर था उस समय कहीं से खरगोश उस पीपल के नीचे आ पहुंचा| उसके रहने का कोई ठिकाना नहीं था| जब उसने तीतर का खाली घोंसला देखा तो उसी में रहने लगा|
कुछ दिन बिताने के बाद जब तीतर लौटा तो अपने घर में एक खरगोश को रहते देखा| वह बड़ा नाराज हुआ| उसने खरगोश से पूछा, “तुम यहां क्या कर रहे हो? यह तो मेरा घर है|”
खरगोश ने कहा, “तुम्हारा जब था तब था| अब तो यह मेरा घर है| मै यहां एक-दो दिन से नही कई दिनों से रह रहा हूं|”
तीतर ने कहा, “लेकिन तुम यहां कैसे रह सकते हो? यह घोंसला मैंने खुद अपने लिए बनाया है| मै हमेशा से इसी घर में रहा हूं| अगर विश्वास न हो तो किसी भी पड़ोसी से पूछ लो|”
खरगोश ने कहा, “मै क्यों पूछूं? मै जब आया था तब यह बिलकुल खाली पड़ा था| तभी से मै इसमें रहने लगा| जिस घर में जो रहता है वह उसी का हो जाता है| अब तो यह घर मेरा है|”
तीतर बिगड़कर बोला, “यह सब झूठ है| मै कई दिनों के लिए बाहर चला गया था| अब मै वापस आ गया हूं| मेरा घोसला अभी खाली करो और यहां से निकल जाओ|”
खरगोश ने कहा, “यह तो नहीं हो सकता| यह मेरा मकान है और मै इसी में रहूंगा|”
इस तरह तीतर और खरगोश लड़ने लगे| उनकी तू-तू मैं-मैं सुनकर अन्य कई पशु-पक्षी जमा हो गये| उन्होंने तीतर की बात सुनी और खरगोश की भी| मगर कोई भी यह तय नही कर सका की घर किसका होना चाहिए| तब उन्होंने सुझाया कि यह मामला कानून से तय होना चाहिए|
इस पर तीतर और खरगोश ने अपना मामला किसी न्यायाधीश के सामने रखने का निश्चय किया|
मगर ऐसे झगड़े तय करने के लिए किसी योग्य न्यायाधीश की जरुरत थी जो आसानी स मिलना कठिन था| इस खोज में वे दोनों घंटो तक इधर-उधर भटकते रहे|
अंत में वे गंगा तट पर पहुंचे| नदी किनारे कुछ दूरी पर एक बिलौटा दिखाई दिया| उस बिलौटे को देखते ही वे दोनों डर गये| उन्हें जान का खतरा था|
बिलौटा बड़ा ही धूर्त था| खरगोश और तीतर को इस ओर आते देख उसने चट से आँखे मूंद लीं| हाथ में माला ले ली और पिछले पैरों पर खड़े होकर राम नाम का जाप शुरू कर दिया|
तीतर और खरगोश ने बिलौटे का पूजा-पाठ देखा तो चक्कर में पड़ गये| ऐसा अच्छा बिलौटा उन्होंने पहली बार ही देखा था| उन्होंने मन ही मन सोचा, ‘यह कितना अच्छा है जो भगवान का नाम जप रहा है|’
खरगोश ने कहा, “मेरी समझ में इसी बिलौटे को पंच बनाना चाहिए|”
तीतर ने कहा, “मै भी यही सोच रहा हूं| लेकिन हमें जरा संभलकर रहना होगा| यह हमारा जन्मजात दुश्मन भी है तो|
बिलौटे का पूजा-पाठ खत्म होने तक दोनों चुपचाप खड़े रहे| पूजा खत्मकर बिलौटे ने धीरे से आंखे खोलीं और उन दोनों की ओर देखा|
तीतर ने बिलौटे से कहा, “श्रीमानजी, मेरे और इस खरगोश के बीच एक छोटा-सा झगड़ा उठ खड़ा हुआ है| मगर मामला कानूनी है| आप कृपाकर इस झगड़े का निपटारा कर दीजिये| हम में से जो भी गलती पर होगा उसे आप सजा दे सकते हैं|”
बिलौटे ने कहा, “राम-राम! कैसी बाते करते हो भाई? भगवान का नाम लो| ऐसी बातें न बोलो| मैं तो दूसरों को दुःख देख भी नहीं सकता हूं और तुम कहते हो ‘हम में से एक को सजा दे देना|’ हरे कृष्ण, हरे राम| जो दूसरों को दुःख देता है वह भगवान के कोप का भाजन बनता है| जाने दो इन बातों को| अपने झगड़े का किस्सा कह डालो| मैं बता दूंगा की गलती किसकी है|”
तीतर ने कहा, “किस्सा यों है कि मैं कुछ दिन बाहर रहने के बाद जब घर वापस लौटा तो देखता क्या हूं कि इस खरगोश ने मेरे घोंसले पर कब्जा कर लिया है|”
खरगोश ने चिल्लाकर कहा, “तुम्हारा घर कैसा? वह घर तो मेरा है|”
बिलौटे ने नरमी से कहा, “शान्ति, शान्ति! मुझे पूरा किस्सा तो सुन लेने दो|
पहले तो तीतर ने अपनी बात कही| फिर खरगोश ने अपनी|
दोनों की बाते सुनकर बिलौटा कुछ देर मौन रहा, फिर कहने लगा, “क्या बताऊं भाई, मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूं| मुझे न तो ठीक से दिखाई देता है और न सुनाई देता है| मै तुम्हारा मामला पूरी तरह से समझ ही नहीं सका हूं| तुम दोनों जरा नजदीक आकर बात करो तो अच्छी तरह से समझ आये|”
अब तक खरगोश और तीतर दोनों ही बिलौटे का डर भूल गये थे| उन्हें बिलौटे पर पूरा-पूरा विश्वास हो गया था| वे दोनों नजदीक खिसक आये|
तभी बिलौटे उन पर तेजी से झपटा और एक ही झपट्टे में दोनों का काम तमाम कर दिया| बिलौटा चटपट खरगोश और तीतर को चट कर गया|