कम्बल ही सर्वस्व था
प्राचीन समय की बात है| एक फकीर के पास एक कम्बल था| एक चोर ने फकीर का वह कम्बल चुरा लिया| फकीर इस चोरी से दुखी होकर पास के थाने में गया| वहाँ उसने थानेदार को चोरी की गई वस्तुओं की एक लंबी सूची लिखवा दी| रपट में उसने लिखाया- “उसकी रजाई, मसनद, छतरी, गद्दा, कोट, पाजमा और अनेक वस्तुएँ खो गई हैं|”
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फकीर द्वारा लिखाई हुई चोरी की गई चीजों की लंबी फेहरिस्त सुनकर चोर को गुस्सा आ गया| वह उसका कम्बल लेकर थानेदार के सामने आ गया| कम्बल सामने पटककर वह चोर बोला- “जनाब, यही फकीर का फटा-पुराना कम्बल है और इसी की चोरी किए जाने पर यह फकीर लंबी-चौड़ी फेहरिस्त लिखा गया है- इसने दुनिया-भर की चोरी और गुम हो जाने की शिकायत की है|”
फकीर ने तेजी से अपना फटा-पुराना कम्बल उठाया और वही से छूमंतर होना ही चाहता था कि थानेदार ने उसे रोका और झूठी रपट लिखाने के लिए फकीर को सख्त लहजे में डाँटा|
फकीर ने उत्तर में कहा- “नहीं-नहीं, मैंने कोई झूठी शिकायत नहीं लिखाई|
यह कम्बल आप सबके लिए बेकार की चीज होगी, पर मेरे लिए तो यही गद्दा है, यही रजाई, यही मनसद और छाता है, यही मेरा पजामा है और यही मेरा कोट| यही मेरी एकमात्र दौलत या जायदाद है|” उसने कम्बल का हर प्रयोग कर थानेदार और चोर को बता दिया था कि उसकी बात में सच्चाई थी| वह कम्बल ही उसका सर्वस्व था|
सचमुच फकीरों और संतो के लिए सीमित चीज ही उनका सर्वस्व होता है|
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि निर्धन मनुष्य की एक वस्तु ही उसका सर्वस्व होती है|