कल्याण कैसे होगा?
एक वैश्या थी| उसके मन में विचार आया कि मेरा कल्याण कैसे हो? अपने कल्याण के लिये वह साधुओं के पास गयी| उन्होंने कहा कि तुम साधुओं का संग करो| साधु त्यागी होते हैं, इसलिये उनकी सेवा करो तो कल्याण होगा| फिर वह ब्राह्मणों के पास गयी तो उन्होंने कहा कि साधु तो बनावटी है, पर हम जन्म से ब्राह्मण हैं| ब्राह्मण सबका गुरु होता है|
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अतः तुम ब्राह्मणों की सेवा करो तो कल्याण होगा| इसके बाद वह सन्यासियों के पास गयी तो उन्होंने कहा की सन्यासी सब वर्णों का गुरु होता है; अतः उसकी सेवा करो तो कल्याण होगा|
फिर वह वैरागियों के पास गयी तो उन्होंने कहा कि वैरागी सबसे तेज होता है; अतः उसकी सेवा करो तो कल्याण होगा| फिर वह अलग-अलग सम्प्रदायों के गुरुओं के पास गई तो उन्होंने कहा कि हम सबसे ऊँचे हैं, शेष सब पाखंडी हैं| तुम हमारी चेली बन जाओ, हमारे से मन्त्र लो, तब हम वह बात बतायेंगे, जिससे तुम्हारा कल्याण हो जायेगा| इस प्रकार वह वैश्या जहाँ भी गयी, वहीं उसको अपने-अपने वर्ण, आश्रम, मत, सम्प्रदाय आदि का पक्षपात दिखायी दिया| यह देखकर उसके मन में आया कि अब तत्व समझ में आ गया! युक्ति हाथ लग गयी! साधु कहते हैं कि साधुओं को पूजो, ब्राह्मण कहते हैं कि ब्राह्मणों को पूजो तो हम क्यों न वेश्याओं को पूजें! ऐसा सोचकर उसने वैश्या भोज करने का विचार किया| उसमें सब वेश्याओं को निमन्त्रण दिया| निश्चित समय पर सब वैश्याएँ वहाँ आने लगीं|
उसी गाँव के बाहर एक विरक्त, त्यागी संत रहते थे| उन्होंने देखा तो विचार किया कि आज क्या बात है? जब उनको मालूम हुआ कि आज वैश्याभोज हो रहा है तो वे वैश्या को क्रियात्मक शिक्षा देने के लिए पहुँच गये| रसोई बन रही थी| रसोई बनाने वालों ने पकाये हुए चावलों का पानी (माँड़) नाली में गिराया| वैश्या छत पर खड़ी होकर जिधर देख रहीं थी, उधर बाबा जी बैठ गये और उस माँड़ से हाथ धोने लगे| वैश्या ने देखा तो बोले की बाबा जी यह क्या के रहे हो? बाबा जी ने कहा कि तू अंधी है क्या? तेरे को दिखायी नहीं देता, मैं तो अपने हाथ धो रहा हूँ! वैश्या ने बाबा जी को ऐसा करने से रोका तो वे माने नहीं| वैश्य उतरकर नीचे आयी और बोली कि बाबाजी, यह चावलों का पानी है, इससे तो हाथ और मैले होंगे! आप साफ पानी से हाथ धोओ| बाबाजी ने कहा कि अग्गर इससे हाथ मैले हो जायेंगें तो क्या वैश्याएँ ज्यादा साफ, निर्मल हैं, जिससे इनकी सेवा से कल्याण हो जाएगा? हाथ मैले पानी से साफ होते है या साफ पानी से? यह सुनकर वैश्या को होश आया कि बाबा जी ठीक कह रहे है! तो फिर कल्याण कैसे होगा? बाबाजी बोले-जिस संत में किसी मत, सम्प्रदाय, आदि का पक्षपात, आग्रह न हो, जिसके आचरण शुद्ध हों, जिसमें किसी प्रकार की कामना न हो- वह संत चाहे स्त्री हो या पुरुष, साधु हो या ब्राह्मण, किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय आदि का क्यों न हो, उस संत का संग करो, उनकी बातें सुनों तो कल्याण होगा|
तात्पर्य यह हुआ कि जहाँ स्वार्थ और अभिमान होगा, भोग और संग्रह की इच्छा होगी, वहाँ आसुरी सम्पत्ति आयेगी ही| जहाँ आसुरी सम्पत्ति आयेगी वहाँ शान्ति नहीं रहेगी, प्रत्युत अशांति होगी, संघर्ष होगा, पतन होगा|