कहने की कला (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर ने एक स्वप्न देखा| उस स्वप्न के बारे में उन्हें जिज्ञासा हुई| उन्होंने ज्योतिषी को बुलवाया और अपने स्वप्न के बारे में बताकर उसका फल जानना चाहा|
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ज्योतिषी ने कुछ देर सोचा, फिर बोला – “हुजूर, इस स्वप्न का तो यही अर्थ है कि आपके परिवार के सभी लोग एक-एक करके आपकी नजरों के सामने मारे जाएंगे|”
बादशाह क्रोधित हो गए और उन्होंने ज्योतिषी को मृत्युदण्ड का हुक्म सुना दिया|
बीरबल भी वहां उपस्थित था, बोला – “जहांपनाह, मैं कुछ कहना चाहता हूं|”
“बोलो बीरबल! क्या बात है?”
“हुजूर, इस स्वप्न का अर्थ यह है कि आप अपने परिवार में सबसे अधिक जिएंगे… आपकी उम्र बहुत लम्बी है|”
बादशाह खुश हो गए और बोले – “बीरबल, तुमने मुझे खुश कर दिया, बोलो, क्या मांगते हो… वही मिलेगा|”
“हुजूर, उस ज्योतिषी को माफ कर दें, वास्तव में वह कहने की कला नहीं जानता| जो कुछ उसने कहा और जो मैंने कहा – उन दोनों का गूढ़ अर्थ तो एक ही है किंतु कहने-कहने का फर्क है, एक बात से आप नाराज हो गए और दूसरी बात से खुश|” बीरबल ने कहा|
बादशाह ने ज्योतिषी को माफ कर दिया|