कछुए की उड़ान

कछुए की उड़ान

कछुए का एक राजा था| उसे राजा बृहस्पति के विवाह का निमंत्रण मिला| वह आलसी था, फलतः घर पर ही रह गया| विवाह के उत्सव में सम्मिलित नहीं हुआ| बृहस्पति नाराज हो गए| उन्होंने कछुए की पीठ पर अपना घर ढोने का शाप दे दिया|

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एक समय एक बड़े तालाब में एक कछुआ रहता था| उसमे अनेक राजहंस भी रहते थे| उनकी उड़ान कछुए को बहुत अच्छी लगाती थी| वह भी उड़ना और दुनिया देखना चाहता था, किन्तु उसके पास कोई मार्ग नहीं था| दो राजहंस उसके गहरे मित्र थे| एक दिन कछुए ने कहा कि वह एक लकड़ी को बीच में पकड़ लेगा और दोनों राजहंस उन लकडियों के किनारे पकड़ कर उड़ जायेंगे| इससे उनके साथ उड़कर वह भी दुनिया देख लेगा| राजहंस तैयार हो गए|

पहाड़ी पर उडाता हुआ कछुआ अति आनन्दित था| वह उड़न के मजे ले रहा था| तभी एक कौवा आया और पूछा, “क्या तुम राजा हो कि इस तरह उड़ रहे हो|” कछुआ कहना चाहता था, “हाँ, हूँ|” मगर बोलने के लिए जैसे ही मुंह खोला, पत्थरों पर गिरा जा और टुकड़े-टुकड़े हो गया|

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