जोरू का भाई (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर के साले साहब हर बार बीरबल से मात खाने के बाद भी दीवान बनने के सपने देखते रहते थे और इसके लिए वह अपनी बहन से कहते और बहन अपने मियां यानी बादशाह से| आब जोरू का भाई होने के कारण बादशाह को हर बार उसका एक नया इम्तहान लेना पड़ता था|
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इस बार भी जब जोरू के भाई ने स्वयं को दीवान बनाने के लिए कहा तो बादशाह ने उसे एक कोयले का टुकड़ा देते हुए कहा – “इस कोयले के टुकड़े को यदि तुम तीन दिन के अंदर दस हजार रुपये में बेच दोगे तो मैं तुम्हें दीवान नियुक्त कर दूंगा|”
यह सुनकर साले साहब मायूस होकर कोयले के टुकड़े को देखने लगे| फिर बोले-“हुजूर, यह तो नाइंसाफी है, आप बीरबल को अपने से जुदा नहीं करना चाहते, इसलिए मुझे ऐसा काम सौंप रहे हैं जो संभव ही नहीं है, इस कोयले के टुकड़े के भला कौन दस हजार दे देगा|”
“ठीक है, यह कोयले का टुकड़ा मुझे वापस कर दो|” बादशाह ने कहा|
साले साहब ने वह कोयले का टुकड़ा बादशाह को लौटा दिया| कुछ देर बाद दरबार में बीरबल भी आ गया| बादशाह ने वह कोयले का टुकड़ा बीरबल को देकर उसे तीन दिन में दस हजार में बेचने को कहा| बीरबल ने कोयले का टुकड़ा ले लिया और तीन दिन में दस हजार में बेच देने का वायदा करके चला गया|
बीरबल ने उस कोयले को पीस लिया, फिर उसे एक छोटी-सी हीरे जड़ी डिब्बी में रखा, उस डिब्बी को उससे बड़ी सोने की डिब्बी में रखा, फिर उसे उससे बड़ी चांदी की डिब्बी में डाला| इस तरह उसने उसे अलग-अलग धातुओं की सात डिब्बियों में बंद किया|
इसके बाद उसने पठान का भेष धारण किया और और बड़े बाजार में जाकर मुनादी करवाई कि बगदाद से एक सुरमे वाला आया है जिसके पास ऐसा जादुई सुरमा है जिसे आंखों में डालने से मरे हुए मां-बाप, पूर्वज आदि दिखाई देने लगते हैं|
यह सुनकर कई लोगों को जिज्ञासा हुई कि वे अपने मृत परिजनों को देखें| लोग बीरबल के पास आने लगे| उसने सुरमा आंख में डालने की कीमत पांच सौ रुपये रखी थी| जो भी आंख में सुरमा डलवाने आता बीरबल उससे कह देता कि यदि तुम अपने मां-बाप तो नहीं दिखाई देते थे, किंतु सरेआम उनकी बेइज्जती न हो इसलिए वे कह देते कि उन्हें उनके मां-बाप दिखाई दिए| इस तरह बीरबल ने बीस लोगों की आंख में सुरमा डाला और दस हजार रुपये एकत्र कर लिए| उसका काम खत्म हो गया तो वह दरबार में लौट आया और बादशाह को दस हजार रुपये सौंप दिए|
बादशाह अकबर जानते थे कि बीरबल ने सचमुच कोयलों को बेचकर ही यह दस हजार रुपये एकत्र किए हैं क्योंकि उन्होंने अपने जासूस उसके पीछे छोड़ रखे थे|
बादशाह अकबर ने अपने साले की ओर देखकर कहा – “देखा, इसे कहते हैं लगन, यदि कुछ करने की इच्छा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है|”
साले साहब सिर झुकाए बैठे रहे|