जीवन की सर्वोच्च साधना
प्राचीन समय की बात है| नदी की एक सूखी तलहटी थी| कंकड़-पत्थरों में हीरा-मणिक खोजने वाला खोजी थकान से चूर-चूर हो गया था| अत्यंत परेशान होकर वह अपने साथियों से बोला- “अपनी इस खोज में मैं पूरी तरह से निराश हो चुका हूँ| मैंने कई दिनों की लगातार मेहनत से निन्यानवें हजार नौ सौ निन्यानवें पत्थर इकट्ठा कर लिये होंगे, परंतु मुझे अपने ढेर में हीरे-मणिक एक कण भी नहीं मिला|”
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उसके एक साथी ने हँसकर कहा, “भाई, एक पत्थर और बटोर लो| अपने पत्थरों की गिनती पूरी एक लाख कर लो| शायद उसी में तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाए|
निराश साथी ने एक पत्थर और उठा लिया| वह दूसरे पत्थरों से अधिक भारी था| उस चमकीले पत्थर को देखकर वह चिल्लाने लगा- “दोस्,तों यह तो वास्तव में हीरा है| हमें हीरों की खान मिल गई है|”
उक्त कथन के साथ में लोकमान्य तिलक जीवन चर्चा जो लेनी आवश्यक है|
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जीवन में अनवरत प्रयास की निरंतर आहुति देने में ही जीवन की सफलता अनुभव करते थे| उन्होंने लिखाया था- “मैं संसार में एक ही चीज को परम पवित्र मानता हूँ, वह है मनुष्य का अपनी प्रगति के लिये किया गया अनवरत प्रयास| मानवमात्र के प्रति निष्छल प्रेमभाव रखते हुए, और ईर्ष्या-द्वेष आदि भावनाओं की कलुषित छायाओं से दूर रहकर निष्काम भाव से श्रमरत रहने की भावना ही जीवन की सर्वोच्च साधना है|”
सच है, बिना प्रयास के कुछ भी करना कठिन है|