जितनी लम्बी चादर उतने पैर पसारो (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर के दरबारियों को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि बादशाह हमेशा बीरबल को ही बुद्धिमान बताते हैं, औरों को नहीं|
“जितनी लम्बी चादर उतने पैर पसारो” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
एक दिन बादशाह अकबर ने अपने सभी दरबारियों को दरबार में बुलाया और दो हाथ लम्बी तथा दो हाथ चौड़ी चादर देते हुए कहा – “इस चादर से तुम लोग मुझे सर से लेकर पैर तक ढंक दो तो मैं तुम्हें भी बुद्धिमान मान लूंगा|”
सभी दरबारियों ने कोशिश की किंतु उस चादर से बादशाह को पूरा न ढंक सके, सिर छिपाते तो पैर निकल आते, पैर छिपाते तो सिर चादर से बाहर आ जाता| आड़ा-तिरछा, लम्बा-चौड़ा हर तरह से सभी ने कोशिश की किंतु सफल न हो सके|
अब बादशाह ने बीरबल को बुलवाया और वही चादर देते हुए उन्हें ढंकने को कहा|
जब बादशाह लेटे तो बीरबल ने बादशाह के फैले हुए लम्बे पैरों को सिकोड़ लेने को कहा| बादशाह ने पैर सिकोड़े और बीरबल ने सिर से पांव तक चादर से ढंक दिया| अन्य दरबारी आश्चर्य से बीरबल की ओर देख रहे थे| तब बीरबल ने कहा – “जितनी लम्बी चादर उतने ही पैर पसारो|”