जीओ तो सम्मान से; मरो तो सम्मान से
यूनान के विवरण में लिखा है कि सिकंदर के शासन के विरुद्ध भारत का बुद्धिजीवी वर्ग अपना उग्र रोष हर दृष्टि से प्रकट करने के लिए तत्पर था| सिकंदर के विरुद्ध एक भारतीय राजा को भड़काने वाले ब्राह्मण से यवनराज सिकंदर ने पूछा- “तुम क्यों इस राजा को मेरे विरुद्ध भड़काते हो?”
“जीओ तो सम्मान से; मरो तो सम्मान से” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
ब्राह्मण ने जवाब दिया- “मैं चाहता हूँ यदि वह जीए तो सम्मान पूर्वक जीए, नहीं तो सम्मानपूर्वक मर जाए|
सिकंदर से एक ब्राहमण सन्यासी ने कहा था- “तुम्हारा राज्य सूखी हुई खाल के समान है, जिसका कोई गुरुता-केंद्र नहीं है| जब सिकंदर राज्य के एक पार्श्व पर खड़ा होता है तब दूसरा हिस्सा उसके खिलाफ उठ खड़ा होता है|”
सिकंदर तो संसार के स्वामी धौः (ज्योस) का पुत्र है, यदि तुम उसके सामने आओगे तो वह तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर देगा|
उस सन्यासी ने यह सुनकर उपेक्षा की हँसी में कहा था- “जिस तरह सिकंदर धौः का बेटा है, उसी तरह मैं भी धौः का पुत्र हूँ| मैं अपनी मातृभूमि भारत से पूरी तरह खुश हूँ जो माता के समान मेरा पालन-पोषण करती है| यदि सिकंदर गंगा के पार की भूमि में गया तो नंद की सेना उसे यह दिखा देगी कि वह अभी सारे संसार का स्वामी नहीं हुआ है|
उस सन्यासी ने साहस को देख-सुनकर सिकंदर स्तब्ध रह गया था|
आगे जाकर, पश्चिमोतर भारत में सिकंदर के खिलाफ जो विद्रोह हुआ था वस्तुतः वह जन विद्रोह था, उसका नेतृत्व तत्कालीन बुद्धिजीवी वर्ग ने किया था|
इससे शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक व्यक्ति को आत्म सम्मान के साथ जीना चाहिए|