झूठ नहीं बोलूँगा
संस्कृत भाषा का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है-: ‘मृच्छ कटिकम्-| इस ग्रंथ में चारुदत ब्राहमण के उत्तम शील की चर्चा की है|
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चारुदत एक सच्चा ब्राहमण था, उसकी सच्चाई और सद्व्यवहार पर सब विश्वास करते थे और उसके पास अपनी धरोहर रखे जाते थे| एक बार कोई उसके पास अपनी बहुमूल्य रत्न धरोहर के रुप में रख गया| संयोग से ब्राहमण चारुदत के घर चोरी हो गई| इस चोरी में उसके पास रखे धरोहर के रत्न भी चोरी हो गए| चारुदत को अपनी चोरी का उतना दुःख न था, जितना दूसरे के द्वारा धरोहर में रखे रत्नों की चोरी का| यह सूचना चारुदत के मित्र को जब मिली, तब उसने पूछा- “क्या कोई रत्नों की धरोहर रखने का साक्षी (गवाह) था?”
चारुदत ने कहा- “उस समय तो साक्षी कोई नहीं था|”
मित्र बोला- “गवाह नहीं था तो डरते क्यों हो? वह रत्न लौटाने के लिए कहे तो कह देना कि मेरे पास रखे ही नहीं गए थे|”
चारुदत ने उत्तर में कहा-
भैक्ष्येणाथर्जयिष्यामि पुनर्न्यासप्रतिक्रियाम्|
अनृतं नाभिधास्यामि चारित्रभ्रंश- कारणम्||
-चाहे भीख माँगू, पर धरोहर के रत्नों का धन उत्पन्न करके मैं उसे लौटा ही दूँगा, किसी भी अवस्था में चरित्र को कलंकित करने वाले असत्य का प्रयोग नहीं करूँगा, मैं झूठ कभी नहीं बोलूँगा| यह बात सत्य है कि झूठ बोलने से व्यक्ति का चरित्र कलंकित होता है|