जरासंध

जरासंध

युधिष्ठिर के राज्य में चारों ओर सुख, शान्ति और समृद्धि थी| कुछ वर्षों पश्चात राज्य के प्रमुख सदस्यों ने उन्हें राजसूय यज्ञ संपन्न करने का आग्रह किया| 

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चकित होकर युधिष्ठिर बोले, “राजसूय यज्ञ! परन्तु इस यज्ञ को तो वही राजा कर सकते है जो सभी राज्यों द्वारा स्वीकृत सम्राट हों| ऐसे राजा का सबसे अधिक शक्तिशाली होना आवश्यक है| और यहाँ तो एक से एक शक्तिशाली राजा विद्यमान हैं, इसे क्यों भूलते हैं|”

“राजन, निश्चय ही आप सभी राजाओं में श्रेष्ठ हैं, पराक्रमी हैं,” सबने सर्वसम्मति से कहा|

युधिष्ठिर ने कृष्ण को बुलाकर पूछा, “मेरी प्रजा चाहती है कि मैं राजसूय यज्ञ संपन्न करूँ| कृपया मुझे सलाह दें कि क्या ऐसा करना उचित होगा?”

कृष्ण ने उत्तर दिया, “अवश्य| परन्तु मगध का राजा जरासंध बहुत शक्तिशाली है| यहां तक कि राजा शिशुपाल भी उससे भयभीत रहता है| मैंने तीन बार जरासंध के साथ युद्ध किया और तीनों बार मुझे पराजित होना पड़ा| उसे परास्त करने के बाद  ही तुम राजसूय यज्ञ कर सकते हो|”

युधिष्ठिर ने कहा, “क्या हम उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दें?”

कृष्ण बोले,  “नहीं, उसकी सेना तुम्हारी सेना से कहीं अधिक शक्तिशाली है| उसे हराने की केवल एक विधि है- तुम उसे मल्ल युद्ध के लिए ललकारो|”

युधिष्ठिर स्वभाव से बहुत सज्जन, दयालु और शांतिप्रिय थे| अतः उन्होंने पूछा, “क्या जरासंध के साथ युद्ध करना आवश्यक है?”

कृष्ण ने उत्तर दिया, “राजसूय यज्ञ के लिए जरासंध का वध आवश्यक है| वह एक निरंकुश और अत्याचारी शासक है|”

जरासंध के जन्म की कहानी बहुत अनोखी है| अनेक वर्षों तक उसके पिता की कोई संतान नहीं थी| तभी एक दिन उनकी भेंट एक ऋषि से हुई| ऋषिवर ने उन्हें एक फल दिया और कहा की वह अपनी पत्नी को खाने को दे दें, इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी| जरासंध के पिता की दो पुत्रियाँ थी| इसलिए उन्होंने फल के दो टुकड़े किये और दोनों पत्नियों को एक-एक टुकड़ा दे दिया| कुछ समय पश्चात दोनों ने आधे-आधे बालक को जन्म दिया| राजा ने दुखी होकर सैनिकों को आज्ञा दी कि वे दोनों हिस्सों को ले जाकर फेंक दें| जरा नाम की एक वृद्ध नारी को दोनों आधे भाग पड़े मिले| जैसे ही वह दोनों को समीप लाई, वे जुड़ गये एक बालक का रूप ले लिया| जरा उस बालक को राजा के पास ले गई| राजा ने बालक का नाम जरासंध  (जरा द्वारा जोड़ा गया) रखा| वह बड़ा होकर बहुत शक्तिशाली परन्तु क्रूर राजा बना| उसके शरीर में एक ही कमजोरी थी-कोई भी प्रबल शत्रु उसके शरीर को दो भागों में चीर सकता था|

उन दिनों, कुछ समय से जरासंध अशुभ संकेतो के कारण चिंतित था| राजधानी के द्वारा पर पहरेदारों की संख्या बढ़ा दी गई| रात्रि के समय द्वारा बंद कर दिये जाते| राजधानी में किसी का प्रवेश करना असंभव था|

कृष्ण की सलाह से भीम तथा अर्जुन उनके साथ गुप्त रूप से ब्राह्मणों के वेश में जरासंध की राजधानी गए| वहां राज्य सभा में भीम, अर्जुन और कृष्ण अन्य ब्राह्मणों के साथ खड़े थे| जरासंध उन्हें बहुत समय तक देखता रहा, फिर बोला, “तुम लोग ब्राह्मण नहीं हो|”

भीम ने उत्तर दिया, “नहीं, हम तुम्हें युद्ध के लिए ललकारने आए हैं| ये कृष्ण हैं, ये अर्जुन और मैं भीम हूँ|” जरासंध ने उत्तर दिया, “कृष्ण गवाले हैं और अर्जुन बालक समान है| भीम, मै तुमसे ही युद्ध करूँगा क्योंकि तुम अपनी शक्ति के लिए प्रसिद्ध हो|”

इस प्रकार जरासंध और भीम में मल्ल युद्ध प्रारम्भ हुआ| दोनों बहुत प्रबल थे| यह कहना कठिन था कि विजय किसकी होगी| तेरह दिनों तक मल्ल युद्ध चलता रहा| तीन बार भीम ने अपना पैर जरासंध की जांघ पर रखकर उसके टुकड़े किये परन्तु हर बार शरीर के दोनों हिस्से एक-दूसरे के पास आकर जुड़ जाते| तभी भीम ने देखा कि कृष्ण के पास एक तिनका लिया और उसके दो हिस्से करके दोनों टुकड़ों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया| भीम ने उनका संकेत समझा और वेग से जरासंध को धराशायी कर, उसके शरीर को दो भागों में चीरकर विपरीत दिशाओं में फेंक दिया| इस बार जरासंध के शरीर के दोनों हिस्से आपस में जुड़ नहीं पाए और जरासंध का अंत हो गया|

अर्जुन और भीम ने कारागृह में जाकर उन छयासी राजाओं को मुक्त किया जिन्हें जरासंध ने वर्षो से बंदी बनाया हुआ था| जरासंध के पुत्र को राजा घोषित कर भीम, अर्जुन और कृष्ण इंद्रप्रस्थ लौट गए|

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