जैसे को तैसा
सुंदरवन के एक ऊँट और सियार में घनिष्ठ मित्रता थी|
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एक दिन सियार बोला, ‘ऊँट भाई! थोड़ी दूरी पर खरबूजे का एक खेत है| क्यों न हम वहीं दावत खाएँ| मुझे खरबूजे खाएँ काफ़ी दिन बीत गए|’
ऊँट चलने को तैयार हो गया|
दोनों खेत में जाकर खरबूजे खाने लगे|
सियार जल्दी-जल्दी खा-पीकर निश्चिंत हो गया| लेकिन ऊँट अभि खरबूजे खाने में मस्त था|
खरबूजे खाकर सियार खेत में ही एक पेड़ के नीचे बैठकर ‘हुआ-हुआ’ करने लगा|
‘मित्र! यह क्या कर रहे हो? खेत का मालिक आ धमका तो…|’ ऊँट बोला|
‘क्या करूँ मित्र, मुझे खाने के बाद गाने की आदत है| यदि मैं गाऊँगा नही तो खाया-पीया हजम नही होगा|’ यह कहकर वह फिर ‘हुआ-हुआ’ करने लगा|
उसकी आवाज़ सुनकर खेत का मालिक आ पहुँचा और ऊँट को खरबूजे खाते देख उसे लाठी से पीटने लगा|
उसे पिटते देख सियार वहाँ से भाग खड़ा हुआ|
किसी तरह ऊँट भी अपनी जान बचाकर भागा|
थोड़ी देर में ऊँट भी जंगल में आ पहुँचा|
उसने एक पेड़ के नीचे सियार को आराम करते देखा| सियार ऊँट को देखकर खिलखिलाकर हँस पड़ा|
जहर का घूँट पीकर ऊँट चुप ही रहा|
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए|
ऊँट ने सियार से बदला लेने की मन-ही-मन में ठान ली थी| एक दिन उसने सियार से कहा, ‘मित्र! चलो, नदी की सैर करते है|’
सियार बोला, ‘लेकिन मुझे तो तैरना ही नही आता|’
ऊँट बोला, ‘कोई बात नही, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाना|’
सियार सैर के लिए तैयार हो गया| वह ऊँट की पीठ पर बैठ गया| गहरे पानी में जाकर ऊँट डुबकी लगाने लगा|
‘अरे मित्र! यह क्या करते हो? ऐसे तो मैं पानी मैं डूब जाऊँगा|’ सियार बोला|
‘तुम डूबो या तैरो| मुझे तो पानी देखकर डुबकी लगाने की इच्छा होती है|’ कहकर ऊँट ने फिर डुबकी लगा दी|
इस बार पानी का तेज़ बहाव आया और सियार उसमें बह गया| वह बहुत चिल्लाया लेकिन ऊँट ने कोई ध्यान नही दिया|
कथा-सार
घी निकालने के लिए उँगली को टेढ़ा करना पड़ता है| कुटिल स्वभाव वाले प्रेम की भाषा नही समझते और लातों के बहुत बातों से नही मानते| सियार ने ऊँट के साथ मक्कारी की थी और मौका पाकर ऊँट ने उसका जवाब दे दिया|