जैसा चाहो वैसा बनोगे
एक माँ चाहे तो अपना बेटा ऐसा बना सकती है कि बकरी से भी बच्चा डर जाए और ऐसा बहादुर भी बना सकती है कि वह शेर को भी मार दे|
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माताएँ चाहे तो अपनी लोरियों की सीख से अभिमंयु जैसे वीर बालक पैदा कर सकती हैं| शिवाजी की माता ने शिवा की लोरियों में सीख दी थी कि यदि शत्रु को जीतना हो तो दूसरे की स्त्री को माता के समान समझो| वीर शिवाजी ने जीवन-भर दूसरों की बहू-बेटियों को आदर-सम्मान दिया| माता की लोरियों से शिवाजी का मन इतना दृढ़ हो गया कि आज संसार में उनका यश चारों ओर फैला है| रणजीत सिंह की माता ने भी बालक रणजीत को अपने देश की स्थिति के अनुरुप ढाला था| एक दिन राजा रणजीत सिंह अपनी विजय पताका लहराते देखकर प्रसन्न हो रहा था| उसने माता से पूछा- “माँ, मैं किस प्रांत को विजय करुँ?”
उस समय उस वीर रणजीत की तेजस्विनी माता ने उत्तर दिया था- “बेटा,
सबही भूमि गोपाल की, उसमें अटक कहाँ|
जिसके मन में अटक है, वो ही अटक रहा||”
मन की अटक छोडों, तो कही भी अटक नहीं- संभवतः माता की इस सीख का आदर करके ही रणजीत सिंह बढ़ चले और वह अटक को भी पार कर देश की पश्चिमी सीमा तक पहुँच गए| इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मनुष्य जैसा इरादा करता है वैसा ही बन सकता है|