जैसे को तैसा
बहुत समय पहले नादुक नाम का एक धनी व्यापारी रहता था| कुछ समय बाद उसे व्यापार में घाटा पड़ गया और वह कर्ज में डूब गया|
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नादुक के दुख के दिन थे| हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कोई लाभ नहीं, यह सोचकर उसने विदेश जाकर धन कमाने का निश्चय किया| अपना सब कुछ बेचकर नादुरा ने सारा कर्ज चुका दिया| सब कुछ बेचने के बाद उसके पास एक लोहे की भारी छड़ रह गई|
यात्रा पर जाने से पहले नादुक अपने मित्र लक्ष्मण के घर गया| नादुक की कहानी सुनकर लक्ष्मण को बहुत दुख हुआ| उसने कहा, “मित्र, मेरे योग्य कोई सेवा हो तो बताओ|”
नादुक ने कहा, “दोस्त, मेरे पास लोहे की एक भारी छड़ है| अगर तुम्हें कोई मुश्किल न हो तो मेरे वापस आने तक उसे अपने पास रख लो|”
“बस, इतनी- सी बात? भला इसमे क्या है? तुम अपनी चीज नि:स्सकोच मेरे पास रख सकते हो| तुम जब भी उसे वापस मांगोगे मिल जायेगी|” नादुक ने पाने मित्र को धन्यवाद दिया और उसका आभार मानते हुए अपने घर चला गया|
लोहे की क्षण को लक्ष्मण के घर छोड़कर नादुक विदेश-यात्रा पर चला गया|
कई वर्षों तक नादुक ने देश-विदेश की यात्रा की और जगह-जगह जाकर व्यापार किया| उसका भाग्य अच्छा था| व्यापार चल निकला और कुछ ही समय में वह फिर धनवान हो गया| धनवान होने के बाद, अपनी सारी दौलत लेकर वह घर वापस लौट आया| उसने एक नया मकान खरीदा और एक बार फिर ठाटबाट से अपना कारोबार चलाने लगा|
कुछ समय बाद वह अपने मित्र लक्ष्मण से मिलने गया| नादुक को देखकर लक्ष्मण बहुत प्रसन्न हुआ और उसे प्रेम पूर्वक बैठाया| नादुक ने उसे अपनी यात्रा और व्यापार के हालचाल सुनाये| चलते समय उसने लक्ष्मण से कहा, “दोस्त, अब मैं यहां आ ही गया हूं तो सोचता हूं कि अपनी लोहे की छड़ भी लेता जाऊं|”
नादुक की बात सुनकर लक्ष्मण ने सिर खुजलाया और ऐसी सूरत बना ली जैसे कि बड़ा ही चिंतित हो| उसके मन में बेईमानी आ गई थी| वह जानता था कि छड़ को बेचकर अच्छा पैसा मिल सकता है| उसने नादुक से कहा, “भाई क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आता| खबर कुछ बुरी है| मैंने तुम्हारी लोहे की छड़ गोदाम में रख दी थी| जब मैं गोदाम में देखने गया तो देखा, दुष्ट चूहों ने सारी छड़ कुतरकर खा डाली थी| दुर्भाग्य से छड़ बाजार में भी मिलनी मुश्किल है, वरना मै खरीदकर तुम्हें वापस दे देता|”
“अरे, इसमें दुखी होने की क्या जरुरत है?” नादुक ने कहा, “अगर लोहे की छड़ को चूहों खा गये तो तुम्हारा क्या दोष? चलो छोड़ो, जो गया सो गया|” इतना कहकर नादुक घर जाने के लिए मुड़ा पर फिर रूककर बोला, “अरे हां, मैंने अपनी यात्रा के दौरान एक उपहार खरीदा था| अपने लड़के रामू को मेरे साथ भेज दो, मै उसी के हाथ भिजवा दूंगा|”
लक्ष्मण अपने चतुराई पर बहुत प्रसन्न था| साथ ही उसे लग रहा था कि वह अपनी चोरी में केवल सफल ही नहीं हुआ बल्कि उसने नादुक को झूठी बातों का विश्वास भी करा दिया है| साथ ही साथ वह उपाहर देखने को भी उत्सुक था| इसलिए उसने तुरन्त अपने बेटे रामू को बुलाया और उसे नादुक के साथ भेज दिया|
नादुक रामू को लेकर घर पहुंचा और उसे फुसलाकर तहखाने के अन्दर ले आया| फिर वह तहखाने का दरवाजा बंद करके बाहर से ताला लगा दिया और चुपचाप अपने कम-धन्धे में लग गया| शाम को जब रामू लौटकर नहीं आया तो उसके पिता चिंता होने लगी|
वह नादुक से पूछने लगा, “भाई, मेरा लड़का लौटकर घर नहीं आया|” नादुक ने दुखी चेहरा बनाकर कहा, “क्या बताऊं दोस्त, जब हम दोनों इधर आ रहें थे तो अचानक एक बाज नीचे झपटा और मेरे कुछ करने से पहले ही रामू को लेकर उड़ गया|”
“झूठ!” लक्ष्मण ने चिल्लाकर कहा, “कहीं एक बाज पन्द्रह वर्ष के लड़के को लेकर उड़ सकता है?” फिर तो दोनों में ऐसी तू-तू मैं-मैं हुई कि चारो ओर से लोग दौड़े आये ओर उनके आस-पास भीड़ जमा हो गई| इस लड़ाई का फैसला न हो सकने पर दोनों न्यायालय पहुंचे|
न्यायाधीश के पास पहुँचते ही लक्ष्मण जोर से चिल्लाकर बोला, “हुजुर! इस आदमी ने मेरा बच्चा चुरा लिया है| कृपाकर बच्चा मुझे वापस दिलवा दीजिये|”
न्यायाधीश ने नादुक से पूछा, “क्या तुमने इसका बच्चा चुराया है?”
नादुक ने जवाब दिया, “श्रीमान, यह मैं कैसे कर सकता हूं| उसे तो मेरी आँखों के सामने से एक बाज उठाकर ले गया|”
न्यायाधीश ने क्रोध में आकर कहा, “तुम झूठे हो, बाज एक लड़के को लेकर कैसे उड़ सकता है?”
नादुक ने कहा, “हुजूर, अगर लक्ष्मण के गोदाम में एक भारी-भरकम लोहे की छड़ को चूहे खा सकते हैं तो एक बाज लड़के को लेकर क्यों नहीं उठा सकता?”
यह सुनकर न्यायाधीश चकित तो हुआ ही साथ ही वह नादुक की पूरी कहानी जानने के लिए उत्सुक भी हो गया| नादुक ने लोहे की छड़ का सारा किस्सा सुनाया| उसकी कहानी सुनकर न्यायाधीश ने लक्ष्मण को आज्ञा दी कि वह तुरन्त नादुक को उसकी छड़ लौटा दे और नादुक से कहा कि वह लक्ष्मण को उसका बेटा वापस कर दे| इस फैसले से नादुक और लक्ष्मण दोनों प्रसन्न हुए और उन्होंने खुशी-खुशी न्यायाधीश की आज्ञा का पालन किया|