जादुई देग का रहस्य
एक किसान को अपने खेत में खुदाई के दौरान एक बहुत बड़ा देग (बड़ा पतीला) मिला| वह देग इतना बड़ा था कि उसमें एक साथ पाँच सौ लोगों के लिए चावल पकाए जा सकते थे| किसान के लिए वह देग बेकार ही थी| उसने वह देग एक तरफ़ रख दी और पुनः खुदाई में जुट गया|
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कुछ देर बाद किसान आराम करने के लिए बैठ गया| उसने अपना फावड़ा (खुदाई का हथियार) उस देग में डाल दिया और लेट गया| आराम करने के बाद जब उसने देग से फावड़ा निकालना चाहा तो उसमें से एक-एक कर सौ फावड़े निकले| किसान आश्चर्यचकित रह गया|
उसने इधर-उधर देखा, वहाँ कोई भी नही था| उसे कुछ समझ नही आया कि ऐसा कैसे और क्यों हुआ|
उसके पास एक सेब था, उसने वह सेब उस देग में डाला, निकालने पर उसमें से सौ सेब निकले|
किसान समझ गया कि यह देग जादू का है| इसमें जो कुछ भी डाला जाएगा वह सौ गुना होकर बाहर आएगा| किसान खुश हो गया| वह उस देग को अपने घर ले आया और अपनी ज़रूरतों को उस देग से ही पूरा करने लगा|
कुछ दिन बाद गाँव के ज़मीनदार को इस जादुई देग के बारे में पता चला| उसने किसान से देग छीन लिया और कहा कि ज़मीनदार होने के नाते इस देग पर उसका हक है|
ज़मीनदार ने अपनी कई चीजों को उस देग में डालकर सौ गुना कर लिया|
उड़ते-उड़ते इस बात की चर्चा राजा तक भी पहुँच गई| उसने अपना हक जता कर देग अपने कब्जे में कर लिया| राजा ने अपनी कई चीजों को उस देग के सहारे सौ गुना कर लिया|
एक बार राजा ने सोचा कि क्यों न इस देग की माया को जानने ले लिए देग के अंदर जाकर देखा जाए, और राजा स्वयं देग में चला गया| वह देग उसे अंदर से साधारण देग की तरह ही दिखा| लेकिन जब राजा बाहर आया वहाँ सौ राजा खड़े थे|
सभी राजा सिंहासन पर अपना-अपना हक जताने लगे| लेकिन सिंहासन तो एक ही था, अतः सभी सौ राजाओं में युद्ध छिड़ गया| सभी ने एक-दूसरे को मार डाला, कोई भी जीवित नही बचा|
वह जादुई देग अब भी एक कोने में यूँ ही पड़ा था|
कथा-सार
जादुई देग का पहले किसान ने और फिर ज़मीनदार ने अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार प्रयोग किया| इसके पीछे दोनों के मन में छिपा लालच था| राजा ने भी कई चीजें देग में डालकर सौ गुना कर ली| लेकिन उत्कंठा वश यह जानते हुए भी कि एक की सौ हो जाती है, स्वयं देग में घुस गया और स्वयं अपने प्राणों का ग्राहक बन बैठा| कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी कार्य को करने से पहले आगा-पीछा अवश्य सोच लेना चाहिए|