जब सैनिक की बहादुरी से प्रभावित हुए अकबर
राजस्थान में राणा प्रताप के अतिरिक्त रघुपति सिंह ही एकमात्र ऐसा सैनिक था जो अकबर के सामने घुटने टेकने के लिए तैयार नहीं था। अपने परिवार से दूर वह राणा प्रताप की सहायता करता रहता था। उसके घर पर पहरा बैठा दिया गया, लेकिन वह घर आता ही नहीं था। उसके गुप्तचर ही उसे घर का समाचार दे दिया करते।
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एक बार उसका पुत्र बहुत ज्यादा बीमार हो गया। पुत्र की बीमारी जब अधिक बढ़ गई तो उसने घर जाने का निश्चय किया। एक शाम वह अपने घर पहुंचा तो पहरे पर खड़े सिपाही ने उसे पकड़ लिया। तब रघुपति सिंह ने कहा- देखो, मेरा बेटा बहुत बीमार है। मुझे एक बार उससे मिलने दो। फिर मैं स्वयं को तुम्हारे हवाले कर दूंगा। सिपाही को दया आ गई। उसने रघुपति सिंह को अंदर जाने दिया। बाहर सेनापति को रघुपति सिंह के घर आने की बात पता चल गई। उसने आकर पहरे पर तैनात सिपाही से पूछा, तो सिपाही ने सच-सच बता दिया।
तब सेनापति ने रघुपति सिंह के साथ उस सिपाही को भी कैद कर लिया। रघुपति सिंह ने सेनापति से सिपाही को छोड़ देने का आग्रह किया, किंतु वह नहीं माना और दोनों को अकबर के समक्ष पेश कर दिया। अकबर सिपाही से बोला- तेरे मन में दया आ गई, मतलब तू खुदा का बंदा पहले है और बादशाह का सिपाही बाद में। मैं खुश हुआ। जा अपना काम कर। फिर वह रघुपति सिंह से बोला- मैं तुम्हारी बहादुरी व इंसानियत का कायल हो गया। यह कहकर उसने उसे भी मुक्त कर दिया।
वस्तुत: तीन बातें मानव व राष्ट्रहित में सिद्ध मंत्र हैं- अच्छाई की शक्ति का प्रचार करना, शंका से रहित होना तथा अच्छे लोगों की मदद करना।