ईसाई की कहानी
मैं मिस्त्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ| मेरा बाप दलाल था| उसके पास काफ़ी पैसा हो गया| उसके मरने के बाद मैंने भी वही व्यापार आरंभ किया| एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार के लिए गया तो मुझे अच्छे कपड़े पहने एक आदमी मिला| उसने मुझे थोड़े-से तिल दिखाकर पूछा, “ऐसे तिल क्या भाव बिकते है?”
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“मैं सौ मुद्रा प्रति मन पर सारे तिल खरीद लूँगा|” मैंने कहा|
मैं उस सराय में गया, जहाँ का पता मुझे दिया गया था और व्यापारी ने गोदाम खुलवाकर अपना माल तुलवाया| वह एक सौ पचास मन निकला| माल गधों पर लादकर मैंने मंडी के व्यापारियों को दिया और उनसे उनका मूल्य लेकर सराय में गया और साढ़े सोलह हज़ार मुद्राएँ उसके आगे रख दी|
उसने कहा, “दस मुद्रा प्रतिमान के हिसाब से डेढ़ हज़ार मुद्राएँ तो तुम्हारी ही है| तुम इन्हें ले लो, बाकी पंद्रह हज़ार मुद्राएँ भी अपने पास रखो| ज़रुरत पड़ने पर मैं तुमसे ले लूँगा|”
यह कहकर वह अपने नगर को चला गया| एक महीने बाद मेरे पास आकर बोला, “मेरा रुपया तुम्हारे पास है|”
मैंने कहा, “रुपया तैयार है, कहै तो अभी दे दूँ| लेकिन आप घोड़े से उतरिए और कुछ खा-पीकर ताजादम हो जाइए|”
उसने कहा, “नही, मुझे एक ज़रुरी काम से फौरन जाना है| तुम रुपए निकालकर रखो| मैं थोड़ी देर में लौटकर तुमसे ले लूँगा|”
मैंने रुपए निकलवा लिए, लेकिन वह लौटकर न आया| एक महीने तक उसकी प्रतीक्षा करने के बाद मैंने उसकी रकम को सुरक्षापूर्वक तहखाने में रखा| तीन महीने बाद वह मुझे फिर दिखाई दिया| मैंने उससे कहा, “आप अपनी रकम तो ले लीजिए|”
उसने हँसकर कहा, “जल्दी क्या है, ले लूँगा| मैं जानता हूँ कि मेरा धन ईमानदार आदमी के पास है|” यह कहकर वह फिर चला गया| एक वर्ष बाद वह फिर दिखाई दिया तो मैंने कहा, “अब तो आप अपना पैसा ले ही लीजिए| अगर आप इसे व्यापार में लगाते तो अच्छा मुनाफ़ा कमाते| खैर, अब मेरे घर चलकर भोजन करें और रुपया ले ले|”
उसने कहा, “अच्छा चलता हूँ किंतु भोजन में कोई विशेष आयोजन न करना|”
मैंने उसके सामने भोजन रखा| वह बाएँ हाथ से खाने लगा| मैंने यह भी देखा कि वह हर काम बाएँ हाथ से ही करता था| मुझे यह देखकर इसका कारण जानने की उत्कंठा हुई| मैंने सोचा, ‘यह व्यक्ति बड़ा सभ्य और सुसंस्कृत है| इससे इस बात का कारण पूछँ तो यह बुरा नही मानेगा|’
जब हम लोग भोजन कर चुके और नौकर हमारे भोजन के बर्तन ले गए तो हम दूसरे दालान में आकर बैठ गए| मैंने उसका पान आदि से सत्कार किया तो ये सब चीजें भी उसने बाएँ हाथ से ही ली|
मैंने उससे कहा, “अगर आप नाराज़ न हो तो एक बात पूछूँ? क्या कारण है कि आप जो भी काम करते है, बाएँ हाथ से ही करते है, दाएँ हाथ से कुछ भी नही करते? यहाँ तक कि खाना भी आपने बाएँ हाथ से ही खाया|”
उसने यह सुनकर ठंडी सांस भरी और आस्तीन उलटकर दायाँ हाथ, जो हमेशा लंबी आस्तीन से ढका रहता था, मुझे दिखाया| मैंने देखा की उसका दायाँ हाथ की कलाई से गायब है| मैंने पूछा, “आपका हाथ कैसे कटा?”
मेरे इस सवाल पर वह दुखी होकर रोने लगा, फिर उसने मुझे अपनी कहानी सुनाई-
मैं बगदाद का रहने वाला हूँ| मेरे पिता वहाँ के प्रमुख रईसों में से था| मैंने मिस्त्र देश की बड़ी प्रशंसा सुनी थी और उसे देखना चाहता था| जब तक मेरा बाप जिंदा रहा, उसने मुझे मिस्त्र जाने की अनुमति न दी| जब उसका देहांत हो गया तो मैं स्वतंत्र हो गया और मैंने बहुत दिनों की इच्छा की पूर्ति करनी चाही| मैंने बगदाद और मोसिल की बहुत सी व्यापार की वस्तुएँ खरीदी और मिस्त्र की ओर चल दिया| काहिरा में पहुँचकर मैं एक सराय में उतरा| इस सराय का नाम मसरुर था| दो-चार दिन बाद मैंने किराए पर एक घर और गोदाम लिया| मैंने कुछ सेवक भी रखे और उनसे कहा कि बाज़ार से मेरे खाने के लिए कुछ ले आए| उन्होंने नाना प्रकार के व्यंजन मेरे सामने लाकर रखे| मैंने भोजन करके शहर की दर्शनीय मस्जिदें, किले आदि देखे और सारा दिन सैर-सपाटे में बिताया|
दूसरे दिन मैं अच्छे कपड़े पहनकर पर अपनी गठरियों से दो-चार थान निकालकर उन्हें बाज़ार ले गया, ताकि उनके मूल्य का अनुमान करुँ| मेरा अनुमान पहले ही लोगों को ज्ञात था, इसलिए मेरे पास कई दलाल आ गए| उन्होंने मेरे थान बाज़ारों में दिखाए और उन्हें बेच डाला| मैं रोज थोड़ा-थोड़ा माल बाज़ार लाता और वह बिक जाता| किंतु मेरा घर बाज़ार से बहुत दूर था और मुझे माल लाने की मज़दूरी काफ़ी पड़ जाती थी, इसलिए दलालों ने मुझे सलाह दी कि यदि तुम हम पर विश्वास करो तो हम तुम्हें अच्छी तरकीब बताएँ| तुम अपना सारा बेचने वाला माल इन व्यापारियों की दुकानों में रखवा दो| सप्ताह में सिर्फ़ एक दिन सोमवार या गुरुवार को बाज़ार आया करो और व्यापारियों से अपनी बिके हुए माल का दाम ले लिया करो| इसमें तुम्हारी रोज़ की मजदूरी भी बचेगी और समय भी| इस खाली समय में तुम नील नदी या अन्य सुंदर स्थानों की सैर करके जी बहलाया करना|
मैंने यह स्वीकार कर लिया| मैं दलालों को अपने घर ले गया और एक बार में ही उन्हें सारा बिकने वाला माल दे दिया| वे माल को लेकर मेरे साथ बाज़ार आए और सारा माल व्यापारियों की दुकान पर रखवा दिया| उन्होंने मुझे मेरे माल की रसीद लिख दी और मैंने भी लिखकर दे दिया कि मैं महीने-महीने आकर बिके माल का दाम वसूल किया करुँगा| यह सब करके मुझे बड़ा संतोष मिला| मैंने अपने कुछ समवयस्कों से मित्रता करके उनके साथ घूमना-फिरना शुरु किया| अक्सर मैं उनके साथ बाज़ार भी जाता है और वहाँ के मोल-भाव को देखकर ज्ञान और मनोरंजन प्राप्त करता|
एक दिन मैं बदरूदीन व्यापारी की दुकान पर बैठा हुआ था| एक अत्यंत संभ्रांत स्त्री, जी कीमती पोशाक और तरह-तरह के जेवर पहने थी और जिसके कई साफ़-सुथरी सेविकाएँ भी थी, आकर मेरे पास बैठ गई| मुझे इच्छा होने लगी कि यह अपने चेहरे से नक़ाब हटाए तो मैं नेत्र सुख उठाऊँ|
उसने मेरी इस इच्छा को समझ लिया और बहाने से दो-एक क्षण के लिए नकाब को झटके से उठा दिया| मैं उसके अनुपम रुप को देख ठगा-सा रह गया| उसने बदरूदीन से साधारण कुशल-क्षेम पूछने के बाद एक अच्छा जरी का थान माँगा| उसने एक थान दिखाया जो उस सुंदरी को बहुत पसंद आ गया| उसने पूछा, “यह थान कितने का है| मैं इसे ले जाऊँगी और कल दाम भिजवा दूँगी|”
बदरूदीन ने कहा, “थान छह हज़ार छह सौ मुद्राओं का है, किंतु यह इनका माल है और मैंने इनसे वादा किया है कि इनके बिके हुए सारे माल की कीमत आज ही इन्हें दे दूँगा| अगर मेरा माल होता तो मुझे चिंता नही थी| आप जब भी चाहती, इसका दाम दे देती|”
उस स्त्री ने कहा, “आप एक दिन के लिए भी नही ठहर सकते?”
बदरूदीन ने कहा, “मज़बूरी है| मुझे आज भी इनकी माल की कीमत देनी होगी|”
वह सुंदरी इस पर नाराज़ हो गई| उसने थान बदरूदीन के सामने फेंक दिया और बोली, “तुम व्यापारी लोगों में सभ्यता बिल्कुल नही होती| तुम अपने अलावा और किसी पर विश्वास नही करते|” यह कहकर वह तमककर उठकर खड़ी हो गई और दुकान से चल दी|
वह कुछ ही दूर गई थी कि मैंने उसे पुकारकर कहा, “आप आइए| मैं आपको कष्ट पहुँचाए बगैर सौदा कर लूँगा|”
वह स्त्री लौट आई, क्योंकि उसे यह तो मालूम ही था की माल का मालिक मैं हूँ| मैंने वह थान उसे देकर कहा, “आप इसे शौक से ले जाएँ| यह आप ही का है, चाहे दाम दे या न दे|”
यह सुनकर वह प्रसन्न हुई और बोली, “खुदा आपको धनी और सुखी रखे|”
मैंने उससे चुपके से कहा, “लेकिन आपको थान ले जाने से पहले यह करना होगा कि मुझे अपने अनुपम रूप का रसास्वादन करने दे|”
उसने अपने मुख पर पड़ी जाली की नकाब हटा दी| मैं पहले से भी अधिक चकित दृष्टि से उसे टकटकी बाँधकर देखने लगा| उसने कुछ क्षणों के बाद नकाब फिर डाल दिया और थान उठाकर चली गई|
मैं कुछ देर तक आवाक और भ्रमित-सा बैठा रहा| फिर मैंने व्यापारी बदरूदीन से पूछा, “यह स्त्री कौन है?”
उसने बताया कि यह अमुक व्यापारी की पुत्री है| इसके पिता के पास असंख्य धन था, उसका देहांत हो गया है और अब यह सारी संपत्ति की स्वामिनी है| उससे यह जानकारी लेने के बाद मैं कुछ देर में उठकर अपने निवास स्थान पर पहुँचा| मैं अभी भी उस सुंदरी के अनुपम रुप के ध्यान में निमग्न था| मैंने भोजन भी नही किया और रात भर उसकी मोहिनी छवि मेरी आँखों में समाई रही|
दूसरे दिन मैं फिर बाज़ार गया और अपने मित्र बदरूदीन की दुकान पर जा बैठा| मुझे पहुँचे कुछ ही क्षण बीते थे कि वह युवती अपनी सेविकाओं के समूह के साथ वँहा पहुँच गई और बोली, “देखा तुम लोगों ने कि मैं अपने वादे का कितना ध्यान रखती हूँ|”
मैंने कहा, “आप पर मुझे पूरा भरोसा था| आपने बेकार ही इतनी जल्दी दाम पहुँचाने का कष्ट किया|”
वह बोली, “यह ठीक है, किंतु लेन-देन में खारापन अच्छा रहता है|” यह कहकर उसने छह हज़ार छह सौ मुद्राओं की थैली मुझे दे दी और मेरे पास बैठ गई|
मैंने कुछ क्षणों में, जब बदरूदीन तथा अन्य लोगों का ध्यान इधर न था, उससे अपने प्रेम का निवेदन किया| उसने कुछ उत्तर न दिया और उठकर चली गई| मैंने समझा की मेरे प्रेम निवेदन से वह रुष्ट हो गई है, अतः और दुखी हुआ| कुछ देर बाद मैं भी वहाँ से उठकर निरुद्देश्य ही एक ओर चल दिया|
काफ़ी दूर जाकर मैं जब एक गली में पहुँचा तो किसी ने पीठ पर हाथ रखा| मैंने पलटकर देखा तो वह उसी सुंदरी की एक सेविका थी| उसे देखकर मुझे खुशी हुई| उसने धीरे से मेरे कान में कहा, “मेरी मालकिन तुमसे बात करना चाहती है और तुम्हें बुला रही है|”
मैं तुरंत उस सेविका के साथ हो लिया| थोड़ी दूर जाकर देखा कि वह सुंदरी एक सर्राफ की दुकान पर बैठी है| वह मेरी प्रतीक्षा अधीरतापूर्वक कर रही थी और उसने मुझे तुरंत हाथ पकड़कर अपने समीप बिठा लिया और बोली, “तुम ही मेरे प्रेम में व्याकुल नही हो, मेरी भी यही दशा है| किंतु बदरूदीन के सामने यह कहना उचित नही था|” उसने थोड़ी देर रुककर फिर कहा, “या तो तुम मेरे घर चलो या मैं तुम्हारे घर आऊँ|”
मैंने कहा, “मेरा किराए का मकान तुम्हारे आगमन के योग्य नही है, मैं ही आ जाऊँगा|”
उसने कहा, “ठीक है, कल बुधवार है| तीसरे पहर तुम अमुक गली में आकर अमुक व्यापारी का मकान पूछना, मैं वही मिलूँगी|”
मैं घर आ गया| वह दिन और रात बेचैनी से बिताई| दूसरे दिन सवेरे ही मैंने बढ़िया कपड़े पहने| निश्चित समय पर एक थैली पचास अशर्फियों की अपनी कमर में बाँधकर उस सुंदरी की बताई हुई गली में पहुँचा| मैंने एक आदमी से उसका मकान पूछा तो उसने बता दिया| मैंने अपने किराए के ऊँट के चालक को किराया देकर कहा, “कल सुबह यही से मुझे ले जाना और मेरे घर पहुँचा देना|”
घर के दरवाजे पर ताली बजाई तो दो गुलाम लड़कों ने द्वार खोला और कहा, “अंदर आइए, मालकिन आपकी राह देख रही है|”
मैं अंदर गया तो देखा की सात सीढ़ी ऊँचे फर्श की एक विशाल बरादरी है, जिसके चारों ओर जाली का घेरा है| उसके आगे फूलों का एक बाग था| इसके अलावा कई घने वृक्ष भी उस भवन में थे| कई फलों से लदे हुए पेड़ भी थे, जिन पर पक्षी कलरव कर रहे थे| पक्षियों की मधुर ध्वनि के अतिरिक्त ऊँचाई पर बने हुए कुंडों से निर्झर रुप में पानी उस बाग में गिर रहा था| वे कुंड बड़े विशाल और सुंदर थे और उनमें अजगर के मुख की आकृति के परनाले बने थे, जिनसे पानी बाग में गिरता था| पानी भी स्फटिक मणि की भांति स्वच्छ और अत्यंत निर्मल था|
दोनों गुलाम मुझे एक मकान में ले गए, जो अत्यंत सुंदर था और उसमें भांति-भांति की सजावट की चीजें रखी थी| वहाँ एक गुलाम मेरे पास रहा था और दूसरा दौड़कर अपनी मालकिन को खबर करने के लिए गया| कुछ ही देर में वह सुंदरी हंसनी जैसी मंद और शालीन गति से चलती हुई आई| वह अत्यंत मूल्यवान वस्तु पहने थी और सिर से पाँव तक जेवरों से लदी हुई थी| उसे देखकर मैं खुशी से पागल हो गया| वह भी मुझे देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई| हम दोनों एक दालान में बैठकर बातें करने लगे| कुछ ही देर बाद गुलाम हमारे पास फल, मेवे और शराब लाया| कुछ सेविकाएँ मीठे स्वर में गाने लगी और कुछ अन्य प्रकार की परिचर्चा करने लगी| मेरी प्रेमिका भी अपने हाव-भाव और अपने मधुर गायन से मेरी प्रसन्नता बढ़ाती रही|
इसी तरह सारी रात आनंद से बीती| सवेरा हुआ तो मैंने पचास अशर्फियों की थैली चुपके से उसके पास तकिए के गिलाफ के अंदर रख दी और उसके पास से उठकर कहा, “अब मैं चलता हूँ|”
उसने पूछा, “कब आओगे?”
मैंने कहा, “आज शाम को फिर आऊँगा|”
वह हँसी-खुशी मुझे द्वार तक पहुँचाने आई| सवारी के लिए ऊँट वाला दरवाजे पर मेरी प्रतीक्षा कर रहा था| ऊँट पर बैठकर मैं अपने घर आया और ऊँट वाले से कहा, “शाम को मुझे फिर उसी मकान पर पहुँचा देना|”
अपने घर से मैंने तरह-तरह की खाद्य वस्तुएँ उस सुंदरी के घर भिजवाई|
शाम को निश्चित समय पर ऊँट वाला आया| मैंने एक और पचास अशर्फियों की थैली कमर में बाँधी और अपनी प्रेमिका के साथ सारी रात बिताकर सुबह फिर चुपके से वह थैली उसके पास छोड़कर विदा हुआ| इसी तरह मैं काफ़ी समय तक उसके यहाँ जाता रहा| कुछ ही समय में मेरा धन समाप्त हो गया और मैंने उसके यहाँ जाना छोड़ दिया| धनाभाव में मेरी बुरी हालत हो गई और मेरी समझ में नही आ रहा था कि क्या करुँ?
एक दिन सवेरे के समय मैं शाही किले के पास घूमने गया| वहाँ काफ़ी भीड़-भाड़ थी| अचानक मैंने देखा कि एक आदमी घोड़े पर सवार आ रहा है और उसकी जीन से एक लंबी डोर के सहारे मुद्राओं की एक थैली लटक रही है| संयोग से एक लकड़हारा उसके समीप से निकला| उसने लकड़ियों की खरांज से बचने के लिए घोड़े का रुख यकायक फेरा| इससे वह थैली बिल्कुल मेरे पास आ गई| मैंने लालच में आकर थैली को झटके से अपने कब्जे में कर लिया| सवार ने जब देखा की थैली गायब है तो उसने तलवार म्यान के अंदर रखे हुए ही उसे मेरे सिर पर मारा| मैं गिर पड़ा| आसपास के लोग उस सवार को बुरा-भला कहने लगे, “तुमने इस बेचारे को क्यों मारा?”
उसने कहा, “तुम लोगों को कुछ नही मालूम| यह चोर है और इसने मेरी थैली चुराई है|”
मेरे दुर्भाग्य से उसी समय सिपाहियों की गश्त आ पहुँची| गश्त के मुखिया यानी दरोगा ने पूछा, “भीड़ क्यों लगाए हो?”
सवार ने अपनी थैली के खोने की बात कही| दरोगा ने पूछा, “तुम्हें किस पर शक है|”
इस पर उसने मेरी ओर इशारा करके कहा, “थैली इस आदमी ने चुराई है|”
दरोगा ने पूछा तो मैंने इंकार कर दिया| फिर भी सवार ने ज़ोर देकर कहा, “चोर यही है|”
अब दरोगा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि मेरी तलाशी ली जाए| मेरी तलाशी ली गई तो थैली मेरे पास से निकली| दरोगा ने सवार से कहा, “अगर थैली तुम्हारी है तो कुछ पहचान बताओ, जिससे सिद्ध हो सके की थैली तुम्हारी ही है|”
उसने एक विशेष प्रकार के सिक्कों का नाम लेकर कहा, “इस थैली में इस प्रकार के बीस सिक्के है|”
थैली को खोलकर देखा गया तो उसमें वास्तव में उसी प्रकार के बीस सिक्के निकले| दरोगा ने थैली सवार को दे दी और मुझे पकड़कर काज़ी के सामने पेश कर दिया| काज़ी ने आदेश दिया, “इसका दाहिना हाथ काट दो, क्योंकि चोरी की यही सज़ा है|”
चुनाँचे मेरा हाथ काट दिया गया| फिर काजी ने कहा, “यह तो चोरी का दंड हुआ| इसने झूठ भी बोला है, इसलिए झूठ के दंड स्वरुप इसका एक पाँव भी काटा जाए|”
अब मैंने उस सवार को जो गवाह के तौर पर वहाँ था, पाँव पकड़े और अनुनय-विनय की कि मुझे काफ़ी सज़ा मिल चुकी है| अब इस नई सज़ा से मुझे बचाओ|
उस सवार को मुझ पर दया आ गई और उसने काज़ी से कहा, “मैं अपना अभियोग वापस लेता हूँ, इसे झूठ बोलने का दंड न दे|” अतः काज़ी ने पाँव काटने का आदेश वापस ले लिया|
सवार वास्तव में भला आदमी था| उसने वह थैली मुझे दे दी और कहा, “तुम्हारे व्यवहार और सूरत-शक्ल से यह नही मालूम होता कि तुम पेशेवर चोर हो| तुम पर जरुर कोई विपति पड़ी होगी, जो तुमने ऐसा काम किया| यह कहकर वह अपनी राह चला गया|
वहाँ जो लोग थे, दया करके वे मुझे एक घर में ले गए| वहाँ उन्होंने मुझे कुछ खाने-पीने को दिया| उन्होंने मुझे एक गिलास शराब पिलाई और मेरे हाथ में दवा लगाकर खून बंद करने के बाद उस पर पट्टी बाँध दी| मैं धीरे-धीरे अपने घर आया| अब कोई सेवक वहाँ नही था, क्योंकि निर्धनता के कारण मैंने सबको हटा दिया था| कुछ ही देर में जी घबराया कि मैं अकेले कैसे रहूँ| सोचा कि अपनी प्रेमिका के पास चलूँ| एक बार ख्याल आया कि मेरी ऐसी हालत देखकर वह मुझसे घृणा करने लगेगी| किंतु और कोई व्यक्ति ऐसा था भी नही, जिसका मैं सहारा लेता| फिर भी एक अन्य रास्ते से गिरता-पड़ता मैं उसके घर पहुँच गया और एक बिस्तर पर चुपचाप लेट गया| कुछ ही देर में वह सुंदरी मेरे आने का समाचार पाकर मेरे पास आई| मैंने अपना कटा हुआ हाथ अपनी आस्तीन में छुपा लिया| मुझे अशक्त और पीड़ा से तिलमिलाता देखकर बोली, “प्रियतम! यह तुम्हारी क्या दशा है?”
मैंने सारी घटना को छुपाने का निर्णय किया और कहा, “मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है, इसलिए मैं तड़प रहा हूँ|”
वह बोली, “यह तुम बहाना बना रहे हो| तुम्हें कोई और कष्ट है| केवल सिरदर्द से तुम ऐसे तड़पने वाले नही हो| कुछ दिन पहले तक तो तुम हट्टे-कट्टे थे| यह तुम्हें क्या हो गया है?”
मैंने उसकी बात का कुछ उतर न दिया, लेकिन मुझे अपनी दशा पर रोना आ गया| उसने कहा, “देखो, तुम्हें सारा हाल सच-सच बताना पड़ेगा| अगर झूठ बोलोगे या हाल छुपाओगे तो मैं समझूँगी कि तुम्हें मुझसे बिल्कुल प्रेम नही है और अभी तक जो प्रेम प्रदर्शन करते थे, वह केवल ढोंग था|”
मैंने रोकर कहा, “प्रियतम! तुम मुझसे मेरा हाल न पूछो| मेरा हाल ऐसा नही है कि बताया जा सके| कम-से-कम मैं अपने मुँह से अपनी दशा का वर्णन करने का साहस नही जुटा पा रहा हूँ|”
इस पर वह चुप हो गई थी और मेरे सिर पर हाथ फेरने लगी| इसी भांति काफ़ी समय बीत गया| शाम हुई तो उसने कहा, “चलो, हम भोजन कर ले|”
मैंने सोचा की दाहिना हाथ तो है ही नही, भोजन कैसे करुँगा| इसलिए मैंने कहा कि मुझे भूख नही है| उसने कहा, “बड़े खेद की बात है कि तुम इतने पीड़ित और दुखित हो कि भोजन भी नही करते और फिर भी मुझसे अपना हाल छुपा रहे हो| अच्छा, यह शराब पियो|”
मैंने शराब का प्याला बाएँ हाथ से पकड़ा और आँसू बहाते हुए शराब पीने लगा| मेरी प्रेमिका ने पूछा, “तुम क्यों ठंडी साँसे ले रहे हो और क्यों तुम्हारी आँखों में आँसू है?”
मैंने कहा, “मेरे हाथ में सूजन आ गई है, उसमें बहुत दर्द हो रहा है|”
उसने कहा, “मैं देखूँ क्या हो गया है तुम्हारे हाथ में?”
इस पर मैंने कुछ न कहा और प्याले की सारी मदिरा एक ही बार में पी ली| प्याले में शराब बहुत थी| पीड़ा और थकान के अलावा शराब के तेज नशे ने जो असर किया तो मैं लगभग बेहोश-सा होकर सो गया| उस सुंदरी ने मुझे सोता जानकर मेरी पीड़ा का भेद जानना चाहा और आस्तीन उलटकर देखा तो मेरा दाहिना हाथ कटा हुआ पाया| उसे ताज्जुब और दुख हुआ| मैं जागा तो उसे बहुत उदास और दुखी देखा| उसने मुझसे यह नही कहा कि मैं तुम्हारा हाथ देख चुकी हूँ| शायद वह सोच रही थी कि मैं इस बात से बुरा मानूँगा| लेकिन उसने अपने सेवकों से कहा, “तुरंत मुर्गे की गाढ़ी यखनी तैयार करो|”
उन्होंने थोड़ी ही देर में यखनी बना दी| उसे पीकर मेरे शरीर में शक्ति आई और मैं वहाँ से चलने के लिए उठ खड़ा हुआ| मेरी प्रेमिका ने मेरा दामन पकड़ लिया| वह कहने लगी, “मैं तुम्हें इस दशा में जाने न दूँगी| तुम मुझे अपने दुर्भाग्य और दुख का कारण नही बताते, फिर भी मैं जानती हूँ कि तुम्हारी यह दशा मेरे ही कारण हुई है| मुझे इससे जो पश्चाताप हो रहा है, उसे तुम नही समझ सकते| मैं इस सदमे को झेल नही सकूँगी और मेरा अंत समय निकट ही समझो| अब तुम वही करो, जो करने को मैं तुमसे कहूँ|”
यह कहकर उसने अपने सेवकों से कहा कि मुहल्ले के पुलिस दरोगा और कुछ माननीय निवासियों को बुलाओ| उनके आने पर उस स्त्री ने मेरे नाम अपनी सारी संपत्ति लिख दी और कागज़ पर उनकी गवाही ले ली| इसके बाद उसने एक संदूक खोला, जिसमें मेरी दी हुई सारी अशर्फियों की थैलियाँ रखी थी| उसने कहा, “तुम यह थैलियाँ मेरे लिए छोड़ गए थे, लेकिन मैंने इन्हें हाथ भी नही लगाया है|”
यह कहकर उसने संदूक में ताला डाल दिया और उसकी चाबी मुझे दे दी| उसी दिन से वह स्त्री बीमार पड़ गई| उसका रोग तेजी से बढ़ता गया और वह तीन सप्ताह बाद मर गई| मैंने उसके सारे अंतिम संस्कार पूरे किए ओर फिर उस सारी संपत्ति को लेकर, जो उसने मेरे नाम की थी, बगदाद में आ गया| वे तिल जो तुमने बिकवाए थे, उसी के धन से खरीदे गए थे|
उस बगदाद के व्यापारी ने सारा हाल कहकर मुझसे कहा, “अब तुम्हें मेरे बाएँ हाथ से खाने का रहस्य मालूम हो गया| मैं तुम्हारा आभारी हूँ कि तुमने इतना समय लगाकर और कष्ट सहकर मेरी कहानी सुनी और मेरे जी को हल्का किया| तुम्हारे शालीन व्यवहार और भद्रता से मुझे बहुत आनंद मिला है| मेरे तिलों का जो दाम तुम्हारे पास है, वह तुम्हीं रख लो- किंतु मैं तुमसे एक बात और कहना चाहता हूँ| मैं बहुत दिनों से बगदाद में हूँ और बहुत दिनों से देशाटन छोड़ चुका हूँ| मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी सहायता करो, ताकि मैं नगर-नगर जाकर व्यापार करुँ|” साल में जो भी मुनाफ़ा होगा, उसमें से हम लोग आधा-आधा बाँट लिया करेंगे|”
मैंने कहा, “आपकी कृपा की तो कोई सीमा ही नही मालूम होती है| अपने तिलों का सारा मूल्य मुझे दे डाला और अब अपने विशाल व्यापार में मुझे साझीदार बना रहे है| मुझे इस बात से हार्दिक प्रसन्नता होगी कि व्यापार में आपकी सहायता करुँ|”
इसके बाद एक शुभ मुहूर्त में हम लोगों ने अपनी यात्रा आरंभ की| हम लोग बगदाद से कूच करके कई देशों के प्रमुख नगरों में व्यापार के लिए गए, फिर ईरान पहुँचे| वहाँ से आपकी राजधानी काशनगर आए| हम लोगों को इस तरह व्यापार करते हुए कई वर्ष हो गए थे ओर हमारे पास काफ़ी धन हो गया था| फिर उस आदमी ने कहा, “अब मेरी इच्छा है कि ईरान में स्थाई रुप से रहने लगूँ|”
चुनाँचे हम लोगों ने अपनी सारी धन-संपत्ति आधी-आधी बाँट ली और खुशी-खुशी एक-दूसरे से विदा ली| वह ईरान में जाकर रहने लगा और मैं काशनगर में बस गया|
यह कहकर ईसाई व्यापारी ने कहा, “अब बताओ, मेरी यह कहानी कुबड़े की कहानी से विचित्र है या नही?”
बादशाह ने आँखें तरेरकर कहा, “बिल्कुल बकवास है| तुम्हारी कहानी में कोई दम नही है| मैं तुम चारों को उस कुबड़े के बदले मरवा दूँगा|”
अब अनाज का मुसलमान व्यापारी आगे बढ़ा और बोला, “सरकार मुझे भी मौका दिया जाए| मुझे आशा है, मेरी कहानी अधिक मनोरंजक होगी|”
बादशाह ने उसे कहानी सुनाने की अनुमति दे दी|