ईसा मसीह के शब्दों को जीवन में उतारा यासिन ने
यासिन मुहम्मद एक छोटे-से गांव में चाय की दुकान चलाता था। वह महत्वाकांक्षी व कर्मठ व्यक्ति था। रात-दिन दुकान पर लगा रहता। जल्दी ही उसने कुछ पैसे जमा कर लिए। एक दिन उसकी दुकान पर ग्राम विकास के निदेशक अख्तर हमीद खां आए।
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उन्होंने यासिन को सलाह दी कि गांव में रिक्शा चालकों की एक सहकारी समिति बनाओ। यासिन ने कहा- पहले भी दो बार समितियां बनी हैं, लेकिन चंदे की रकम में गड़बड़ होने से दोनों ही बार वे टूट गईं। अब कोई ऐसी समिति पर विश्वास नहीं करेगा। तब श्री अख्तर ने सुझाव दिया- इस बार सदस्यता शुल्क मात्र एक आना प्रतिमाह रखें।
इसे किसी को देने में दिक्कत भी न होगी और किसी के लिए बेईमानी करने की गुंजाइश भी न होगी। यासिन को बात जंच गई। उसने समिति का गठन किया और शीघ्र ही लोगों का विश्वास जीत लिया। गांव के लोग समिति के सदस्य बनने लगे। रिक्शों की हालत में भी सुधार हुआ। आमदनी बढ़ने लगी। धीरे-धीरे समिति का एक कोष बन गया।
यह क्रम बीस साल तक चलता रहा। अब समिति तीन ट्रैक्टरों व एक धान कुटाई मशीन की मालिक होने के साथ गांव में प्राइमरी और माध्यमिक स्कूल भी चलाने लगी। गांव की सड़कें पक्की हो गईं। समिति का आधुनिक सुविधाओं से सज्जित अपना कार्यालय बन गया। इस प्रकार 22 वेतनभोगी कर्मचारियों की इस समिति ने गांव में किसी को बेरोजगार नहीं रहने दिया।
सार यह कि यदि हम सही दिशा में प्रयास करें तो फर्श से अर्श तक पहुंच सकते हैं। बस ईसा मसीह के इन शब्दों को याद रखना होगा- मांगो- तुम्हें मिल जाएगा, खोजो- तुम पा जाओगे, खटखटाओ- दरवाजे स्वत: खुल जाएंगे।