इन्द्रलोक की ओर
कुछ वर्ष बीतने के बाद हस्तिनापुर में कृष्ण और बलराम की मृत्यु का समाचार पहुँचा| यह सुनकर पांडव बहुत दुखी हुए| क्रमशः राज्य और संसार से उनका मोह कम होता जा रहा था| अंततः पांडवों ने निश्चय किया कि वे राजपाट त्यागकर तीर्थयात्रा पर जायेंगें और फिर वहां से हिमालय की गोद में|
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उन्होंने हस्तिनापुर का राजमुकुट अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को पहनाया और अरण्य की ओर प्रस्थान किया|
मार्ग में एक छोटा कुत्ता उनके साथ हो लिया और दल का सदस्य बनकर उनके साथ चलता रहा| पर्वत के टेढ़े-मेढ़े रास्तो और बर्फीली चट्टानों पर चढ़ना कठिन था| मार्ग में द्रौपदी ने थककर दम तोड़ दिया| पांडव शोकाकुल थे, परन्तु उन्होंने अपनी यात्रा नहीं रोकी| उसके बाद क्रमशः नकुल और सहदेव की मृत्यु हो गई| तत्पश्चात अर्जुन और भीम ने भी दम तोड़ दिया| युधिष्ठिर बिलकुल अकेले रह गए, फिर भी वे रुके नहीं| शांत होकर चलते रहे-कुत्ता अब भी उनके साथ था|
अचानक भगवान इंद्र युधिष्ठिर के सामने आये और उन्हें रथ पर बैठाकर स्वर्ग ले जाने का प्रस्ताव रखा| युधिष्ठिर कुत्ते सहित रथ पर चढ़ने ही वाले थे कि इंद्र ने उन्हें रोका, “यह श्वान तुम्हारे साथ नही जा सकता| स्वर्ग में इसके लिए कोई स्थान नहीं है|” युधिष्ठिर ने ऊतर दिया, “देवराज! यह दुःख में मेरा साथी रहा है| इसके बिना स्वर्ग में मेरे लिए भी कोई स्थान नहीं है| मैं इस मूक-प्राणी को नहीं छोड़ सकता|” यह कहकर वे रथ से नीचे उतर गए|
युधिष्ठिर के मुंह से ये शब्द निकले ही थे कि कुत्ता वहां से अदृश्द्रौपदी्ठिर स्वर्ग पहुँचे|
वहाँ दुर्योधन को युधिष्ठिर ने एक सुन्दर सिंहासन पर बैठे देखा| आश्चर्यचकित होकर युधिष्ठिर ने पूछा, “मेरे भाई कहाँ है? कर्ण कहाँ हैं? द्रौपदी कहाँ हैं? क्या वे स्वर्ग में नहीं हैं?” किसी ने उत्तर दिया, “नरक में हैं|” “मैं भी वहां जाना चाहता हूँ| मै उनके बिना नहीं रह सकता|” युधिष्ठिर को दूत के साथ उनके भाइयों के पास भेजा गया| जैसे ही वे चले, उन्होंने एक भयंकर दृश्य देखा| चारों ओर मृतक और सड़े-गले शरीर थे| रक्त, नरमुंड, और मनुष्यों के बाल भी थे| युधिष्ठिर रहीं गया| उन्होंने पूछा, “अभी हमें और कितनी दूर जाना है?”
स्वर्ग के दूत ने कहा, “यदि आप चाहें तो वापस जा सकते हैं|” धर्मपुत्र
उन्होंने पूछा, “तुम कौन हो?”
उत्तर मिला, “मै कर्ण हूँ|”
“मैं अर्जुन हूँ|” “मैं भीम हूँ|”
द्रौपदी और सब भाइयों के साथ स्वर्ग में प्रवेश किया, जहाँ उन्हें चिरकालीन शान्ति प्राप्त हुई|