वह अविस्मरणीय घटना
बुंदेलखण्ड में ओरछा के निकट एक नदी बहती है, जिसे सातार नदी कहते हैं| उस नदी के किनारे पर एक छोटी-सी कुटिया थी, जिसमें एक आदमी रहता था| घर-बार तो उसका कुछ था नहीं|
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बदन पर भी वह बस एक लंगोटी बांधे रखता था| लोग उसे ‘ब्रह्मचारी’ कहकर पुकारते थे| आस-पास के गांवों में जब कोई छोटा-मोटा उत्सव होता था तो पूजा-पाठ के लिए लोग उसे ले जाते थे| उसने कुछ मंत्र कण्ठस्थ कर लिए थे| कुटिया के आस-पास घना जंगल था| जंगल में भांति-भांति के पक्षी चहचहाते रहते थे और वन्य पशु भी घूमते रहते थे|
एक दिन जंगल का एक बड़ा अधिकारी वहां आया व बोला – “ब्रह्मचारी इधर एक जंगली सुअर आ गया है उसे उड़ाना है| चलो तुम भी चलो|”
ब्रह्मचारी ने हाथ जोड़कर कहा – “न-न मैं नहीं जाऊंगा| मुझे जानवरों से बड़ा डर लगता है|”
अधिकारी मुंह बनाकर बोला – “अरे ब्रह्मचारी होकर डरते हो| चलो उठो मैं तुम्हारे सस्थ हूं| हां यह बन्दूक ले लो| अगर सुअर तुम्हारे सामने आ जाए तो…|”
अधिकारी की बात काटकर ब्रह्मचारी ने कहा – “मैं क्या करूंगा! मुझे बंदूक चलानी नहीं आती|”
अधिकारी बोला – “कोई बात नहीं है| सुअर तुम्हारे पास नहीं आएगा| अगर फिर भी आ जाए तो बंदूक उलटी पकड़कर इसकी मूठ उसके सिर पर जमा देना|”
ब्रह्मचारी इंकार करता रहा, पर अधिकारी नहीं माना| वह उसे खींचकर जंगल में ले गया| उसके हाथ में एक बंदूक थमा दी और अपने से कुछ गज के फासले पर उसे बिठा दिया| हांका हुआ सुअर झाड़ियों के बीच से दौड़ता हुआ आगे आया| अधिकारी ने निशाना साधकर गोली दाग दी, लेकिन सुअर गिरा नहीं इससे साफ था कि निशाना चूक गया| अब क्या हो? जब तक दूसरी गोली चले तब तक वह आगे निकल गया| अधिकारी हैरान था कि क्या करे| अचानक उसे गोली की आवाज सुनाई दी और उसने देखा कि सुअर कुलांट खाकर धरती पर चित गिर गया है और छटपटा रहा है|
अधिकारी ने पास जाकर देखा तो भौचक्का रह गया| गोली सुअर के ठीक मर्म-स्थल पर लगी थी|
अधिकारी को देखकर ब्रह्मचारी वहां आ गया| अधिकारी ने उसकी ओर कड़ी निगाह से देखा तो वह बोला – “यह क्या हो गया? सुअर जैसे ही मेरे आगे आया मेरी तो जान ही सुख गई| हाथ कांपने लगे और अचानक घोड़ा दब गया|”
अधिकारी ने कहा – “मुझे बनाने की कोशिश मत करो सच-सच बताओ तुम कौन हो? तुम अव्वल दर्जे के निशानेबाज हो| सुअर के ठीक वहां पर गोली लगी है, जहां लगनी चाहिए थी| यह काम किसी कुशल निशानेबाज का ही हो सकता है|”
ब्रह्मचारी का चेहरा देखते ही बनता था, मानो अभी एक क्षण में ही वह रो पड़ेगा| ब्रह्मचारी बोला – “देखो तो अभी तक मेरा दिल कितना धड़क रहा है, राम-राम आज तो ऊपर वाले ने ही मेरी जान बचा ली|”
ब्रह्मचारी जैसे-जैसे अपनी बात कहता गया, अधिकारी का संदेह और बढ़ता गया| अंत में ब्रह्मचारी उसे साथ लेकर अपनी कुटिया पर आया और अधिकारी को कसम खिलाई कि वह किसी से कहेगा नहीं| फिर बोला – “मैं चंद्रशेखर आजाद हूं|”