ह्रदय परिवर्तन
करनपुर का राजा विशाल सिहं अपने जिद्दी, घमंडी व निरंकुश पुत्र दलवीर सिंह की वजह से बहुत चिंतित था|
एक दिन वह एक ऋषि के पास गया और निवेदन करने लगा, ‘मुनिवर, केवल आप ही मेरे बेटे का भविष्य बना सकते है| मैं बड़ी उम्मीद लेकर आपके पास आया हूँ| आप मुझ पर कृपा करें|’
ऋषि बोले, ‘ठीक है, राजन! उसे यहाँ आश्रम में भेज देना|’
अगले दिन राजकुमार आश्रम पहुँचा तो ऋषि ने बाग के कोने में ले जाकर उसे नीम का एक नन्हा पौधा दिखाया और उससे कहा, ‘एक पती तोड़कर चखो वत्स!’
राजकुमार ने वैसा ही किया| मुहँ में पती के जाते ही उसका मुहँ कड़वाहट से भर गया| उसने तुरंत उसे थूक दिया, ‘छिः कितना कड़वा स्वाद है| ये तो छोटा-सा पौधा है तब इतना कड़वा है, जब ये पूरा पेड़ हो जाएगा तो…| मैं इसे बढ़ने नही दूँगा|’
और उसने पौधे को उखाड़कर फ़ेंक दिया|
तभी ऋषि बोले, ‘जिस तरह तुमने पौधे को उखाड़कर फेंका है, उसी तरह लोग भी तुम्हें एक दिन उखाड़ फेंकेंगे| क्योंकि अभी तुम राजकुमार ही हो| तुम अभी से इतने उद्दंड हो तो राजा बनने के बाद प्रजा के प्रति तुम्हारा बर्ताव कैसा होगा? यह सोचा है तुमने कभी?’
‘आपने मेरी आँखें खोल दी ऋषिवर| अब मैं अपने आपको पूर्णतया बदल दूँगा|’ यह कहकर वह ऋषि के चरणों में झुक गया|
राजकुमार ने अपना वचन निभाया और दयालु बन गया| फिर कई वर्ष बाद पिता के मरणोपरांत प्रजा को उसे राजा के रूप में स्वीकार करने में कोई हिचक नही हुई|
शिक्षा: कड़वी चीज़ को कोई पसंद नही करता| दवा भी कड़वी होती है लेकिन मज़बूरी में खानी पड़ती है वरना मन तो नही करता| इसी प्रकार कदाचार व सदाचार का अंतर ऋषि ने राजपुत्र को नीम के पौधे के माध्यम से सांकेतिक रूप में समझाया कि व्यक्ति को सदाचारी ही होना चाहिए|