Homeशिक्षाप्रद कथाएँहरिश्चंद्र का राज त्याग

हरिश्चंद्र का राज त्याग

हरिश्चंद्र का राज त्याग

राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी शैव्या और पुत्र के साथ वल्कल वस्त्र धारण किये और राजमहल से बाहर निकल आए|

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राजमहल के बहार अयोध्यावासियों ने महर्षि वशिष्ठ के साथ उन्हें रोका| वशिष्ठ ने राजा से कहा, “हे राजन! समस्त अयोध्यावासी, राजकर्मचारी और मै स्वयं आपके साथ चलने के लिए तैयार हैं| हम आपको अकेले नहीं जाने देंगे|”

राजा ने उन्हें समझाया, “गुरुदेव! आप ही नगरवासियों को समझाए| उनके साथ चलने से मेरा धर्मसंकट और बढ़ जाएगा| आपको भी कष्ट होगा|अच्छा यही है कि आप अपने आश्रम चले जाये या फिर यंहा रहकर सबकी देखभाल करें| ऋषि विशवामित्र ही अब यंहा के राजा हैं| उनकी आज्ञा का पालन करना सभी नगरवासियों और राजकर्मचारियों का धर्म होना चाहिए|आप सब ईश्वर पर भरोसा रखें|उसने मुझे जिस परीक्षा में डाला है, मै उसमें अवश्य सफल होऊंगा|”

लोगों ने एक स्वर में कहा, “नहीं राजन! हम सभी अपने बल-बच्चो के साथ छाया की भांति आपके पीछे-पीछे चलेंगे|”

सेवा का