Homeशिक्षाप्रद कथाएँहनुमान: एक मधुर सुत्र

हनुमान: एक मधुर सुत्र

हनुमान …….आपार शक्ति, विवेक एवं शीलता तो उनका अक्स्मात परिचय हैं । लेकिन आज प्रभु के वो स्वरुप की अनुभुति हुई की मन मुग्ध हो गया ।

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प्रभु तो पवनपुत्र हैं, लेकिन वो तो शंकर के भी पुत्र हैं । एक कथा शायद आपने सुनी ना हो । एक बार प्रभु शिव तथा माता पार्वती वन क्रीडा में लीन थे ।

दोनों वानर रूप धारण कर काम क्रीडा के उत्सुक हुए । किन्तु माता पार्वती ने वानर रूप धारी प्रभु शंकर के वीर्य को धारण करना अस्वीकार किया । प्रभु शंकर का वीर्य धारण करने के लिये वरुण देव उपस्थित हुये । जिस प्रकार कुमार कार्तिकेय के जऩ्म के समय अग़्नि ने प्रभु शिव का वीर्य धारण किया था उसी प्रकार आज वरुण ने किया । किन्तु जैसी उष्मा, जैसी शक्ति उसमे तब थी वैसी ही तो आज भी थी ना । वीर्य की रक्षा तो वरुण ने की किन्तु धारण तो उसे एक स्त्री की शीलता ही कर सकती थी । माँ अंजना ने प्रभु शिव के दैविक वीर्य को धारण किया और तब यह धरती प्रभु हनुमान के आगम्न से सुखी हुई ।  शिव-पार्वती, अंजना-केसरी, वरुण, सुर्य कितने ही असीम व्यकित्त्व हनुमान के जीवन में समावेश हैं । लेकिन हनुमान तो हनुमान तभी हुये जब प्रभु राम कि कृपा तथा सेवा से वो अनुग्रहित हुए । इतना दिव्य हो जिस प्रभु का जीवन, उस हनुमान को क्यूँ नहीं स्मरण करें?

प्रभु हनुमान कि वंदना शिव-शक्ति तथा विष्णु-लक्ष्मी वंदना का समावेश है । एक सुत्र है दो भक्ति समुदायों के बीच । एक सुत्र है मनुष्य को आलोकिक संसार से जोडने का । एक चेतना है जो यह अव्लोकन कराती है कि जब एक वानर प्रभु भक्ति में लीन हो सकता है, तो हम जीव शीरोमणि क्यों नहीं ?

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