गुलाब
एक राजा था| उसका पुत्र बेहद आवारा किस्म का था| राजा अपने पुत्र की आवारागर्दी से बहुत परेशान था| उसने कई बार अपने पुत्र को समझाया कि वह इस राज्य का होने वाला राजा है और अगर उसकी ऐसी ही हरकतें रही तो प्रजा उसे नकार देगी| लेकिन उस पर अपने पिता की सीख का कोई असर नही पड़ा|
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एक बार राज्य में सिद्ध महात्मा पधारे| राजा भी उनसे आशीर्वाद लेने गया और उन्हें अपने पुत्र के बारे में बताया| महात्मा ने राजा से कहा कि वह अपने पुत्र को उनके पास भेज दे|
राजा ने अपने पुत्र को महात्मा के पास भेजा|
राजकुमार ने पहुँचकर महात्मा को प्रणाम किया और कहा, ‘मुझे यहाँ क्यों बुलाया है, कृपया जो काम हो जल्दी बताएँ, मुझे देर हो रही है|’
महात्मा शांत भाव से बोले, ‘पुत्र! मैं तुम्हारा अधिक समय नही लूँगा| बगीचे से गुलाब का एक फूल तोड़ लाओ|’
राजकुमार गुलाब का फूल तोड़ लाया|
महात्मा ने उससे कहा, ‘इसे सूँघो और बताओ किसकी खुशबु है?’
‘सूँघना क्या है…सबको पता है कि गुलाब के फूल से गुलाब की ही खुशबु आएगी|’ राजकुमार ने जवाब दिया|
महात्मा ने कहा, ‘बेटा अब यह फूल महल में ले जाकर गेंहूँ के भंडार में रखो, गुड़ के बीच रखो, फिर सूँघो तो कैसी खुशबु आएगी?’
राजकुमार ने जवाब दिया, ‘गुलाब को कहीं भी रख दो, उससे उसकी खुशबु नही मिटेगी| गुलाब का फूल तो गुलाब की ही खुशबु देगा|’
‘और अगर यह फूल नाली के पास रखा जाए तो…?’ महात्मा ने पूछा|
‘आप भी कैसी बातें करते है|’ नाली के पास रखने के बाद भी सूँघने पर इससे गुलाब की ही खुशबु आएगी|’ राजकुमार ने कहा|
महात्मा बोले, ‘बस बेटा…तू भी गुलाब की तरह बन जा| अपनी खुशबु सबको देते रहो लेकिन दूसरों की दुर्गंध अपने अंदर मत समेटो|’
राजकुमार को महात्मा की बात समझ में आ गई| वह महात्मा से आशीर्वाद लेकर महल में वापस लौट आया और गलत राह को हमेशा के लिए छोड़ दिया|
कथा-सार
बेशक, खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदल लेता हो, लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती है जो अपना अस्तित्व सदैव कायम रखती है| कुसंगत में पड़कर राजपुत्र गलत राह पर चल ज़रूर निकला था, परंतु जब उसे गुलाब का उद्धरण देकर समझया गया तो वह वास्तविकता पहचान गया| परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों न हो अपने अस्तित्व को गुम नही होने देना चाहिए|