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गधे में दिमाग कहां

जंगल का राजा शेर, बूढ़ा और कमजोर हो गया था| अब वह पहले की तरह जानवरों का शिकार नहीं कर सकता था| कभी-कभी तो उसे दिन-दिनभर भूखा रहना पड़ता| दिनों-दिन वह अधिक कमजोर और बूढ़ा होता जा रहा था|

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एक दिन उसने सोचा, ‘इस तरह तो मै कब तक जिऊंगा? कोई न कोई तरकीब निकालनी चाहिए जिससे मुझको हर रोज आसानी से खाने को मिल जाये|’ बहुत सोच-विचार के बाद उसने किसी को अपना मददगार बनाने का निश्चय किया|

उसे लोमड़ी से अधिक उपयुक्त और कोई नजर नहीं आया| उसने लोमड़ी को बुलाया और बड़े प्यार से उससे बोला, “बहन लोमड़ी, तुम तो जानती ही हो मैं तुमको कितना चाहता हूं| इसका कारण है तुम्हारी चतुराई| तुम सबसे चतुर जानवर हो| मैं चाहता हूं तुम मेरी मन्त्री बन जाओ और राजकाज में मेरी सहायता करो|”

लोमड़ी चालाक तो थी ही| उसे शेर की बातों पर विश्वास नहीं हुआ| लेकिन उसमें उसकी बात काटने की हिम्मत भी नहीं थी| उसने बड़े ही विनीत भाव से कहा, “महाराज, आपकी बड़ी कृपा है| मै आपकी आज्ञाकारिणी सेविका हूं| मै जी-जान से आपकी सेवा करूंगी|”

बूढ़ा शेर बहुत खुश हुआ| उसने कहा, “अच्छा, तो सुनो तुम्हारा काम क्या होगा| तुम जानती ही हो कि मै जंगल का राजा हूं और राजा को अपना खाना ढूंढ़ने के लिए जानवरों के पीछे नहीं भागना चाहिए| इसलिये मेरे खाने का इन्तजाम करना तुम्हारा पहला काम होगा| तुम्हे हर रोज मेरे भोजन के लिए एक जानवर लाना होगा| मै जानता हूं कि तुम यह काम आसानी से कर सकोगी|”

“महाराज, मै जी-जान से आपकी आज्ञा का पालन करुँगी|” ऐसा कहकर लोमड़ी शेर के लिए शिकार ढूंढ़ने निकली|

चलते-चलते राह में उसने एक मोटे ताजे गधे को घास चरते देखा| वह गधे के पास जाकर बोली, “अरे, तुम अब तक कहां छिपे थे मेरे दोस्त? मैं तो तुम्हें सत्तरह दिन से ढूंढ़ती-ढूंढ़ती थक गई हूं|”

“क्यों?” गधे ने पूछा, “मैं तो यंही था| लेकिन यह भी बताओ कि तुमको मुझसे क्या काम आ पड़ा है?”

“मैं तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर लाई हूं| तुम्हारे दिन फिर गये हैं|खुशी मनाओ| मैं जंगल के राजा शेर के पास से सन्देश लेकर आई हूं| राजा ने तुमको अपना महामंत्री चुना है और यह बताने के लिए मुझे तुम्हारे पास भेजा है|”

गधे ने डरकर कहा, “बाप रे बाप! शेर ने बुलाया है? मुझको तो डर लगता है| शेर ने मुझको महामंत्री क्यों चुना? मैं उस योग्य नहीं हूं| कृपाकर मुझे ऐसे ही रहने दो|”

लोमड़ी हंसकर बोली, “तुम्हे अपनी योग्यता का खुद पता नहीं| यही तो तुम्हारा सबसे बड़ा गुण है| राजा ने तुम्हारे बारे में बहुत-कुछ सून रखा है| वह तुमसे मिलना चाहते हैं| तुम नेक हो, मेहनती हो| इसीलिए उन्होंने तुमको महामंत्री चुना है|”

लोमड़ी ने इस तरह से बातें बनाईं कि भोले-भाले गधे को उस पर विश्वास हो गया| उसने सोचा लोमड़ी पर भरोसा किया जा सकता है| उसने कहा, “अच्छी बात है| अगर तुम यही कहती हो तो मैं तुम्हारे साथ शेर के पास चल चलूंगा|”

लोमड़ी ने कहा, “तुम सचमुच बुद्धिमान हो, तुम्हे अपने जीवन का यह महान अवसर नहीं खोना चाहिए| हमारे महाराज कई बार तुम्हारी बड़ाई कर चुके हैं| वे तुमसे मिलकर बहुत खुश होंगे|”

लेकिन जब वे शेर के पास पहुंचे तो गधा घबरा गया| वह ठिठककर खड़ा हो गया और लोमड़ी के बहुत कहने पर भी आगे नहीं बढ़ा| तब लोमड़ी ने खुद ही आगे बढ़कर शेर से कहा, “महाराज, महामंत्री बड़े विनीत हैं| आगे बढ़ने में संकोच करते हैं|”

शेर ने कहा, “मुझे ऐसे ही विनीत लोग पसन्द हैं| मैं खुद महामंत्री के पास जाऊंगा|”

शेर बहुत भूखा था| मोटे-ताजे गधे को देखकर उससे रुका नहीं गया और वह गधे की ओर झपटा| गधा पहले से ही चौकन्ना था| वह जान बचाकर भाग खड़ा हुआ|

हाथ से शिकार निकल जाने पर शेर बहुत गुस्सा आया| वह गरजकर लोमड़ी से बोला, “तुम्हारी चाल ठीक नहीं बैठी| शिकार हाथ से निकल गया| जाओ, गधे को वापस लाओ| अगर नहीं लाई तो तुम्हारी खैर नहीं|”

लोमड़ी ने कहा, “महाराज, आपने बहुत जल्दी की, इसमें मेरा क्या दोष? आपको मेरे ऊपर भरोसा करना चाहिए था|मैं खुद उसे आपके पास ले आती| खैर मैं उसे फिर लाने की कोशिश करती हूं|”

लोमड़ी फिर गधे के पास पहुंची और बोली, “तुम बड़े अजीब हो| ऐसे क्यों भागे? महामंत्री को ऐसे करना शोभा नहीं देता|”

गधे ने कहा, “मैं बेहद डर गया था| मैंने समझा कि शेर मुझे खाने के लिए झपट रहा है|”

लोमड़ी ने कहा, “तुम रहे गधे के गधे, अगर शेर मारना ही चाहता तो तुम बचकर थोड़े ही जा सकते थे| असल में राजा तुम्हारे कान में राज्य की कोई गुप्त बात बताने जा रहे थे| वह नहीं चाहते थे कि मैं सुनूं| पर तुम भाग खड़े हुए| भला राजा ने अपने मन में क्या सोचा होगा? चलो, चलकर राजा से क्षमा मांगो| महामंत्री बनकर तुम जंगल के सबसे शक्तिशाली जानवर बन जाओगे, जंगल के सारे जानवर तुमसे डरेंगे|”

गधे ने फिर लोमड़ी की बातों पर विश्वास कर लिया| वह उसके साथ शेर के पास फिर जाने को राजी हो गया|

गधा और लोमड़ी दोनों शेर के पास पहुंचे| शेर की भूख और भी बढ़ गई थी| पर इस बार उसने जल्दी नहीं की| वह गधे की ओर देखकर मुस्कराया और बोला, “स्वागत मेरे दोस्त| तुम मुझसे डरकर भाग क्यों गये? आओ, मेरे पास आओ| आज से तुम मेरे राज्य के महामन्त्री हो|”

गधा शेर की बातों में आ गया| वह जैसे ही शेर के पास पहुंचा, शेर ने झपटकर उसके सिर पर ऐसा गहरा वार किया कि एक ही वार से गधे के प्राण निकल गये| इसके बाद शेर ने लोमड़ी को उसकी चतुराई पर शाबाशी दी| ज्योंही वह गधे को खाने के लिए बढ़ा, लोमड़ी ने विनती की, “महाराज, आप बहुत ही भूखे और थके हैं| आपके खाने का समय भी हो गया है| पर मेरी विनती है कि आप खाने से पहले स्नान अवश्य कर ले, फिर भोजन करके आराम करें|”

शेर ने कहा, “तुम ठीक कहती हो| मैं स्नान करने जाता हूं, तब तक तुम गधे पर नजर रखना|” यह कहकर शेर नदी की ओर चला गया|

लोमड़ी को भी बड़ी भूख लगी थी| उसने मरे हुए गधे की ओर देखकर सोचा ‘मैं इतनी चालाकी से इसको वापस न लाती तो शेर को भोजन कहां से मिलाता? शेर ने तो अपनी मुर्खता से इसे खो ही दिया था| इस गधे के सबसे बढ़िया हिस्से पर तो मेरा अधिकार है|’ यह सोचकर लोमड़ी ने गधे का सिर फाड़कर दिमाग खा लिया|

शेर स्नानकर लौटा तो गधे का सिर फटा देख उसको कुछ शक हुआ| उसने लोमड़ी से पूछा, “यहां कौन आया था? गधे का सिर किसने फाड़ा?”

लोमड़ी ने कुछ ऐसा मुंह बनाया मानो शेर की बात से उसको दुख हुआ हो| उसने कहा, “महाराज, यह जानकार मुझको  बहुत दुख हुआ कि आप अपनी आज्ञाकारिणी सेविका का विश्वास नहीं करते| मैंने गधे की लाश पर से नजर तक नहीं हटाई| इसको किसी ने नहीं छुआ है| आपने ही तो बेचारे की खोपड़ी चकनाचूर कर दी थी|”

शेर ने लोमड़ी पर विश्वास कर लिया| वह को खाने ही जा रहा था कि फिर गरजकर बोला, “इसका दिमाग कहां गया? मै तो इसका दिमाग खाना चाहता था|”

लोमड़ी ने मुस्कराकर जवाब दिया, “महाराज, गधे के दिमाग नहीं होता| अगर इस गधे के सिर में दिमाग होता तो वह दूसरी बार मेरे साथ क्यों आता?”

शेर को लोमड़ी की बात ठीक जान पड़ी| उसने शान्ति और मजे से अपना भोजन किया|

दानी का