गधे का सौदा
एक बार की बात है| एक लड़का था| अक्ल के मामले में थोड़ा-सा कमजोर| एक दिन खेत से लौटते समय उसने एक आदमी को एक गधी लेकर जाते हुए देखा| लड़के को गधी बहुत अच्छी लगी| उसने मालिक से पूछा, “तुम इस गधी को कितने में बेचोगे? मै इसे खरीदना चाहता हूं|”
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वह आदमी बोला, “सौ रुपल्ली हाथ पर धरो और गधी तुम्हारी हुई|”
“मेरे पास सौ रूपये तो नहीं है,” लड़का बोला, “पर पचास रूपये जरुर दे सकता हूं|”
“तो ठीक है बच्चे, सीधे अपना रास्ता नापो और घर जाओ,” मालिक बोला| “या तो सौ रुपल्ली या फिर कुछ भी नहीं|”
“मेरी बात तो सुनो,” लड़का मिन्नत करने लगा, “एक काम करते हैं| मै आपको पचास रूपये नकद देता हूं और बाकी पचास रुपये की जगह मै आपको गधी देता हूं| कहो, कैसा रहा सौदा?”
वह आदमी गधी का मालिक था पर खुद तो गधा नहीं था| झट से मान गया, पचास रूपये जेब के अन्दर किए और गधी लिए वहां से खिसक गया|
वह बुद्धू लड़का भी खुशी-खुशी चल पड़ा| मेरी अक्ल का भी जवाब नहीं, वह सोच रहा था और अपने हाथों में अपनी ख्याली गधी की ख्याली बाघें पकड़े हुए उसे आगे खदेड़ता हुआ चला जा रहा था| घर पहुंचकर उसने अपने पिता को बुलाया, “बापू, देखो, आज मै क्या लाया? एक गधी|”
“गधी कहां से बेटा?” बाप ने पूछा|
लड़का समझने लगा| “देखो बापू, हुआ यूं कि गधी की कीमत थी सौ रुपए| मेरे पास थे सिर्फ पचास रुपए| तो मैंने पचास रुपए मालिक को दिए और बाकी पचास की जगह उसे गधी दे दी| मै अपने सिर पर कोई कर्जा लेकर नहीं आना चाहता था न! कहो, कैसा रहा मेरा गधी का सौदा?”
“वाह बेटा! वाह!” बाप अपना सिर धुनने लगा| “गधी का नहीं गधे का सौदा! तेरी अक्ल का जवाब नहीं!”