दुख-दर्द के बाद ही आती है सुख की घड़ी
दुख और पीड़ा जीवन के अनिवार्य अंग हैं। मनुष्य का उससे बिल्कुल अछूते रहने की कल्पना असंभव है। जीवन में सुख के साथ दुख भी अपने क्रम से आएगा ही। अच्छी परिस्थितियों के बाद विपरीत परिस्थितियों का यह चक्र जीवनभर यूं ही चलता रहेगा। आज मनुष्य विकास की उस अवस्था तक पहुंच गया है, जहां से उसे निरंतर विकासपथ पर आगे ही आगे बढ़ते जाना है।
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वर्तमान आधुनिक परिस्थितियों के मद्देनजर यदि विचार करें तो मानव जीवन जटिल से जटिलतम हो चुका है। हमने अपने आसपास विनाश के साधन जुटा रखे हैं। थोड़ी सी लापरवाही या असावधानी से दृश्य पटल औचक ही बदल सकता है। यह हमें जब-तब प्राकृतिक या मानवीय रूप में दिखाई दे जाता है और हमारे सामने सिवा हाथ मलने के और असहाय होकर हथियार डालने के कुछ नहीं रह जाता।
दृष्टिपात करें वर्ष 1984 की 2 और 3 दिसंबर की रात की वह घटना जब भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस ने हजारों लोगों को लील लिया था और हजारों लोग अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो गए थे। यही नहीं, जिसका दंश विभिन्न विकृतियों के रूप में भोपालवासी आज भी झेल रहे हैं।
जलती आंखों में तड़प और आंसू लिए बदहवास लोगों का इधर-उधर अपनी प्राणरक्षा के लिए भागना और उसके बाद का वह मंजर बरसों बीतने के बाद भी आंखों के सामने आज भी ताजा है। दिसंबर माह की यह काली रात जब-जब आएगी, लोगों की वह पीड़ा और अपनों को खोने का दर्द उन्हें इस घटना की याद दिलाता रहेगा।