डूबते को तिनके का सहारा (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर अपने दरबारियों और कुछ अंगरक्षकों के साथ नौका-विहार कर रहे थे| बीरबल भी उनके साथ था| नाव जब बीच नदी में पहुंची तो अकबर ने एक तिनका दिखाकर कहा – “कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा, आज देखते हैं यह तिनका किसका सहारा बनता है| जो भी इस नदी को तिनके के सहारे पार कर लेगा मैं उसे दिल्ली का बादशाह बना दूंगा|”
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सभी दरबारी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे, तभी बीरबल ने कहा – “हुजूर मैं इस तिनके के सहारे नदी पार कर सकता हूं, किन्तु बादशाह बनने के बाद|”
“हमें मंजूर है, आज के लिए तुम बादशाह हुए, मेरा राज-पाट, दरबारी, अंगरक्षक-सभी आज तुम्हारी सेवा में रहेंगे और तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगे|” अकबर ने कहा और वह तिनका बीरबल को दे दिया|
तिनका अब बीरबल के हाथ में था, उसने अपने अंगरक्षकों से कहा – “अब मैं तुम्हारा बादशाह हूं, उम्मीद है तुम लोग अपने कर्त्तव्यों का पालन करोगे|”
यह कहकर बीरबल नदी में कूदने को तैयार हुआ, किन्तु उसके अंगरक्षकों ने रोक लिया और कहा – “आप हमारे बादशाह हैं और हमारा कर्त्तव्य है आपकी रक्षा करना|”
बीरबल बार-बार स्वयं को छुड़ाकर नदी में कूदने की कोशिश करता रहा और हर बात अंगरक्षक पकड़कर रोक लेते| इसी कशमकश में नाव किनारे आ लगी|
“बीरबल तुम हार गए|” नाव किनारे लगने पर बादशाह अकबर ने कहा|
“नहीं हुजूर! मैं हारा नहीं हूं, मैं तो इसी तिनके के सहारे किनारे तक पहुंचा हूं| यह तिनका मेरे हाथ में नहीं होता, तो अंगरक्षक मुझे नहीं रोकते और अवश्य ही मैं डूब जाता|” बीरबल ने जवाब दिया|
बीरबल की चतुराई को अकबर समझ गए और बोले – “बीरबल तुम सचमुच जीत गए|”