दृण संकल्प
बाद लगभग ढाई हज़ार वर्ष पहले की है| उस समय देश के कई हिस्सों में अकाल-दुर्भिक्ष की स्थिति पैदा हो गई| वर्षा न होने से सूखा पड़ गया| भूख के कारण गरीब जनता त्राहि-त्राहि कर उठी|
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महात्मा बुद्ध उन्हीं दिनों प्रदेश-प्रदेश में विचरण करते हुए श्रावस्ती पहुँचे| वहाँ भी अकाल था| अपने सब, धनी, शक्तिशाली एवं लोकप्रिय शिष्यों को उन्होंने बुला भेजा| उनसे पूछा- “इस भूखी जनता को भोजन कराने का उत्तरदायित्व कौन संभालेगा?”
नगर सेठ बोला- “अकाल से पीड़ित इतने लोगों को कौन खिला सकता है? मेरे पास तो बस थोड़ा-सा ही अनाज है, जिससे मेरा और परिवार का कठिनता से अपना गुज़ारा चल सकेगा|” राज्य के सबसे शक्तिशाली सेनापति बोले- “इस जनता का पेट भरने के लिए मेरे पास भी कुछ नहीं हैं, मेरे घर में भी कुछ नहीं है|” जनता एवं राज्य का गोदाम अन्न से भरने वाले भूमिधर किसान बोले- “सूखे से खड़ी फसल सूख गई है| हमें चिंता है कि हम राज्य का भूमि कर कैसे चुका सकेंगे?”
सब धन सम्पन्न व्यक्तियों एवं जनता के नेताओं द्वारा किसी प्रकार की सहायता देने से इंकार कर दिए जाने पर वहाँ दरवाजे पर बैठी भिखारिन सुप्रिया हाथ जोड़कर सिर उठाकर बोल उठी- “महात्मा जी! मैं भूखों को भोजन दूँगी| मैं धनहीन हूँ, पर मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है| अंकिचनता और निर्धनता ही मेरी ताकत है| मेरी संपत्ति और अनाज आप सबके घरों में है| मैं पैसा-पैसा दाना-दाना एकत्र करुँगी, भूखों को खिलाऊँगी, किसी को भी भूख से मरने नहीं दूँगी|”
यह कहानी हमें यही शिक्षा देती है कि प्रत्येक मनुष्य को इतना ही दृढ़ संकल्पी होना चाहिए|