दो टट्टू
एक व्यापारी के पास दो टट्टू थे| वह उन पर सामान लादकर पहाड़ों पर बसे गाँवों में ले जाकर बेचा करता था| एक बार उनमें से एक टट्टू कुछ बीमार हो गया| व्यापारी को पता नहीं था कि उसका एक टट्टू बीमार है|
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उसे गाँव में बेचने के लिए नमक, गुड़, दाल, चावल आदि ले जाना था| उसने दोनों टट्टुओं पर बराबर-बराबर सामान लाद किया और चल पड़ा|
ऊँचें-नीचे पहाड़ी रास्ते पर चलने में बीमार टट्टू को बहुत कष्ट होने लगा| उसने दूसरे से कहा-‘आज ,मेरी तबियत ठीक नहीं हैं| ,मैं अपनी पीठ पर रखा एक बोरा गिरा देता हूँ, तुम यहीं खड़े रहो| हमारा स्वामी वह बोरा तुम्हारे ऊपर रख देगा| मेरा भार कुछ कम हो जायगा तो मैं तुम्हारे साथ चला चलूँगा| तुम आगे चले जाओगे तो गिरा बोरा फिर मेरी पीठ रख जायगा|’
दूसरा टट्टू बोला-‘मैं तुम्हारा भार ढोने के लिये क्यों खड़ा रहूँ? मेरी पीठ पर क्या कम भार लदा है? मैनम अपने हिस्से का ही भार ढोऊंगा|’
बीमार टट्टू चुप हो गया| लेकिन उसकी तबियत अधिक खराब हो रही थी| चलते समय एक पत्थर के टुकड़े से ठोकर खाकर वह गिर पड़ा और गड्ढे में लुढ़कता चला गया|
व्यापारी अपने एक टट्टू के मर जाने से बहुत दुखी हुआ| वह थोड़ी देर वहाँ खड़ा रहा| फिर उसने उस टट्टू के बचे हुए बोरे भी दूसरे टट्टू की पीठ पर लाद दिये| अब तो वह टट्टू पछताने लगा और मन ही-मन कहने लगा-‘यदि मैं अपने साथी का कहना मानकर उसका एक बोरा ले लेता तो यह सब भार मुझे क्यों ढोना पड़ता|’
संकट में पड़े अपने साथी की जो सहायता नहीं करते उन्हें पीछे पछताना ही पड़ता है|