ढोलवाले की मूर्खता
एक बार ढोलकवादक रमैया और उसका पुत्र कानू कांचिपुरि एक विवाह समारोह में गए| समारोह समाप्त होने पर दोनों को खूब धन आभूषण पुरस्कार स्वरुप मिले| वे खुशी-खुशी अपने घर की ओर लौट चले|
पिता-पुत्र दोनों जंगल से गुजर रहे थे कि पुत्र बोला, ‘बापू, मजा आ गया| आज तो उम्मीद से ज्यादा कमाई हो गई|’
‘तुमने बहुत अच्छा ढोल बजाया था बेटा| इसलिए हमारे पर धन की वर्षा हुई है|’ रमैया खुश होकर बोला|
जब वे बीच जंगल में पहुँचे तो रमैया के बेटे ने ढोल बजाना शुरु कर दिया|
‘अरे! यह क्या कर रहे हो बेटा? रमैया ने टोका|
‘आज मैं बहुत खुश हूँ बापू| मेरा मन बार-बार ढोल बजाने को कर रहा है|’
‘लेकिन, इतनी ज़ोर से न बजाओ| इस जंगल में डाकू ओर लुटेरे बहुत है| आवाज सुनकर तुरंत इधर आ जाएँगे|’ रमैया ने अपने पुत्र को समझाते हुए कहा|
‘आप चिंता न करे बापू, मैं ढोल की प्रचंड ध्वनि से उन्हें भगा दूँगा|’
उधर जंगल में छिपे हुए कुछ लुटेरों ने ढोल की आवाज सुनी| उन्होंने सोचा, ‘लगता है कोई राजा जंगल में शिकार खेलने आया है|’
कुछ देर बाद रमैया बोला, ‘बेटा, अब बस भी करो| यह धुन केवल एक ही बार बजाई जाती है|’
किंतु कानू नही माना और ढोल बजाता ही रहा|
‘बंद कर ढोल बजाना! तू मानता क्यों नही?’ किसी चोर-लुटेरे को खबर हो गई तो…?’ झुँझलाते हुए रमैया ने कानू से कहा|
‘बापू, आप बेकार ही चिंता करते हैं| मैं लुटेरो को इतना भयभीत कर दूँगा कि वे इधर आने की सोच भी नही सकेंगे|’ कहकर वह फिर ढोल बजाने लगा|
उधर लुटेरों के सरदार ने अपने साथियों से कहा’ ‘अरे, फिर वही धुन? इसका मतलब किसी भी हालत में यह राजा का दल नही हो सकता|’
‘मुझे तो लगता है कि किसी नौसिखिए ने खूब पैसा कमाया है और इसी खुशी में वह फूला नही समा रहा|’ एक लुटेरे ने अपनी राय प्रकट की|
‘ठीक हे| चलो, हम उस पर धावा बोल देते है|’ लुटेरों के सरदार ने आदेश दिया|
कुछ ही देर बाद ढोलवादक ओर उसके बेटे के पास जा पहुँचे लुटेरे| उन दोनों के हाथों में मोटी-मोटी गठरियाँ देखकर लुटेरों का सरदार बोला, ‘ज़रुर इन गठरियों में ढेर सारा माल होगा|
लुटेरों ने उन दोनों से गठरियाँ छीन ली और मार-पीटकर वहाँ से भगा दिया|
‘मैंने तुझे पहले ही ढोल बजाने को मना किया था, पर तू नही माना| इस तरह तूने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली|’ रमैया ने अपना सिर धुनते हुए कहा|
‘मुझे शिक्षा मिल गई है बापू| बड़ों की बात न मानने का अंजाम बुरा ही होता है|’
फिर दोनों उदास मन से अपने घर की ओर चल पड़े|
शिक्षा: बड़े-बुजुर्ग जो कुछ भी कहते है, उसमें भलाई छिपी होती है| उनका कहा प्रायः अनुभव सिद्ध होता है| कानू का पिता जानता था जंगल में ढोल बजाने का अंजाम, इसीलिए उसने मना किया था| जो बड़ों की बात नही मानते, वे बाद में पछताते है|