धोखेबाज सारस
एक समय की बात है| एक तालाब के किनारे एक सारस रहता था| तालाब में बहुत सारी मछलियां थी| सारस रोज भरपेट मछलियां खाता|
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ऐसे कई साल बीत गये| सारस बूढ़ा हो गया| अब वह आसानी से मछलियां नहीं पकड़ सकता था| जो हाथ भी लगती, उनसे उसकी भूख नहीं मिटती थी| कभी-कभी वह एक मछली पकड़ नहीं पाता था| उसको चिंता होने लगी कि यदि इस तरह चलता रहा तो वह भूखों मर जायेगा|
उसने एक चाल सोची| वह तालाब के किनारे उदास-मुंह बनाकर खड़ा हो गया| मछलियां, उसके पास से गुजर जाती, लेकिन वह उन्हें नहीं पकड़ता|
तालाब की मछलियां, मेंढक और केकड़े सोचने लगे कि सारस को क्या हुआ है? और वह इतना दुखी क्यों दीख रहा है? एक बड़े केकड़े ने उसके पास जाकर पूछा, “कहो काका, आज गुमसुम क्यों बैठे हैं? मछली-वछ्ली नहीं पकड़ेंगे?”
सारस ने कहा, “क्या करूं भतीजे? बात ही कुछ ऐसी है|मैंने जीवनभर इस तालाब की मछलियां खायी हैं| अब समय बदल रहा है| यह सोचकर दुखी होता हूं कि अब जल्दी ही बेचारी साड़ी मछलियां मर जायेंगी और बिना भोजन भूखों मर जाऊंगा|”
केकड़े ने पूछा, “क्यों काका, मछलियां क्यों मर जायेंगी?”
सारस ने कहा, “मैनो लोगो को कहते सुना है कि वे इस तालाब को मिट्टी से भार देंगे और उस पर खेती करेंगे| अगर उन्होंने ऐसा किया तो एक भी मछली जिन्दा नहीं बचेंगी|”
जब मछलियों, केकड़ो और मेंढको ने सारस की बात सुनी तो वे सब डर गये| वे सब मिलकर सारस के पास गये और कहने लगे, “काका, यह तो आपने बहुत बुरी खबर सुनाई| अब इस मुसीबत से बचने का उपाय भी आपको ही बताना होगा|”
सारस ने कहा, “मै केवल एक पक्षी हूं| फिर भी शायद मै तुम लोगों की थोड़ी-बहुत सहायता कर सकूं| थोड़ी दूर पर बहुत बड़ा और गहरा तालाब है| उसको ये लोग आसानी से पाट नहीं सकते| अगर तुम्म चाहो तो मैं तुम सब लोगों को वहां ले चलूंगा|”
मछलियों ने कहा, “काका, आपके सिवाय हमारा और कौन है? हमें उसी तालाब में ले चलिये|”
सारस ने कहा, “तुम सबको एक साथ ले जाना तो कठिन होगा| लेकिन मैं पूरी कोशिश करूंगा|”
मछलियों में झगड़ा होने लगा| हर एक चाहती थी कि सबसे पहले वह जाये| सारस ने कहा, “तुम सब धीरज रखो| मैं सिर्फ दो चार ही अपनी चोंच में लेकर उड़ सकता हूं| तुम सब झगड़ा मत करो| मैं बारी-बारी से सबको वहां पहुंचा दूंगा| लेकिन मै अब बूढ़ा हो गया हूं, जल्द थक जाता हूं| एक बार वहां तक उड़ने के बाद मुझे थोड़ा आराम करना होगा|”
जल्दी ही सारस अपमी पहली यात्रा पर चल पड़ा| वह कुछ मचलियों को चोंच में दबाकर उड़ा| पर किसी दूसरे तालाब में जाने के बजाय वह उन्हें एक चट्टान पर ले गया| वहां वह उन मछलियों को मारकर चट कर गया| उसके बाद वह फिर वापस तालाब पर पहुंचा| कुछ मछलियां और चोंच में दबाईं और उड़ चला|
भरपेट मछलियां खाकर सारस को नींद आ गई और वह सो गया| जब वह सोकर उठा तो फिर भूख लग आई| वह फिर उस तालाब पर पहुंचा और कुछ और मछलियों को ले आया| उनको भी वह उसी चट्टान पर ले गया और मारकर खा गया|
इस तरह जब उसको भूख लगती तो कुछ मछलियों को दुसरे तालाब पर पहुंचाने के बहाने लाता और मारकर खा जाता|
अब तालाब में थोड़ी ही मछलियां बची थीं| उनमे एक केकड़ा भी था|उसने भी सारस से कहा, “मेरी भी जान बचाइये, काका| मुझको भी यहां से ले चलिये|”
सारस ने मन ही मन सोचा, ‘चलो एक दिन केकड़े का ही भोजन किया जाये| मुंह का स्वाद भी बदलेगा|’ फिर वह बोला, “हां-हां, मै यहां तुम्हारी सहायता करने के लिए ही तो खड़ा हूं| चलो मैं तुम्हें दूसरे तालाब में ले चलता हूं|”
वह केकड़े को लेकर उड़ा| रास्ते में केकड़े को कहीं भी पानी नहीं दिखाई दिया| इतने में उसने देखा कि सारस आगे जाने के बजाय नीचे उतर रहा है|
केकड़े ने पूछा, “काका, यहां तो कोई तालाब नहीं है| फिर आप यहां क्यों उतर रहे हैं? वह तालाब कहां है जहां आप मछलियों को ले गये थे?”
सारस ने हँसकर कहा, “नीचे जो चट्टान देखते हो न, मैं तुमको वहीँ ले जा रहा हूं| वहीँ साड़ी मछलियों को भी ले गया था|”
केकड़े को चट्टान साफ दिखाई दे रही थी| उस पर मछलियों की ढेरों हड्डियां बिखरी पड़ी थी| वह समझ गया कि सारस मछलियों को मारकर खा गया है और अब उसको भी मारने के इरादे से लाया है| अपने सड़सी जैसे चंगुल में उसने सारस की गरदन दबा ली| सारस ने गरदन छुड़ाने की कोशिश की| लेकिन केकड़ा अपना नुकीला चंगुल उसकी गरदन में चुभता ही गया| यहां तक कि सारस की गरदन कट गई| सिर घसीटता हुआ केकड़ा तालाब तक पहुंचा जहां वह रहता था|
मछलियों ने केकड़े को वापस आते देखा तो पूछने लगीं, “क्या बात है भैया, तुम लौट क्यों आये? सारस काका कहां गये?”
केकड़ा मुस्कराकर बोला, “काका तो नहीं आये| हां, उनका सिर आया है|” उसने मछलियों को बताया कि सारस किस तरह उनको धोखा दे रहा था और अब उसने उसको मार दिया है|