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धर्म की दुहाई

महाभारत का युद्ध अट्ठारह दिन चला था| पहले दस दिन तक कौरव-दल के प्रधान सेनापति भीष्म थे|

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भीष्म के घायल होने पर कौरव-दल के मुख्य सेनापति द्रोणा हुए| द्रोणा के भी मारे जाने पर कर्ण कौरव-सेना के सेनापति नियुक्त हुए| उस समय दुर्योधन को सलाह दी गई कि अब भी संधि कर ली जाए, परंतु दुर्योधन ने एक न सुनी| उसकी दृष्टि में अर्जुन-कर्ण का द्वंद युद्ध महाभारत का निर्णायक युद्ध हो सकता है| आख़िर अर्जुन और कर्ण में सीधी भिड़ंत शुरु हो गई|

कर्ण ने दाँत पीसकर अर्जुन पर हमला किया, परंतु अर्जुन ने कर्ण का अभिमान तोड़ने में सारी ताकत लगा दी| इतने में कर्ण ने एक साँप के आकार का बाण डोरी पर चढ़ाकर ऐसा निशान लगाया कि सब चिंतित हो गए, परंतु अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण ने घोड़ों को ऐसे बिठा दिया कि रथ नीचा हो गया और पहिए जमीन में गड़ गए| तीर अर्जुन के सिर के ऊपर से उसका मुकट काटते हुए निष्फल चला गया| कृष्ण ने रथ से उतरकर पहिया निकालने की कोशिश की| युद्ध के नियम के अनुसार कर्ण को युद्ध बंद करना था, परंतु उसने वैसा नहीं किया| उसने अर्जुन पर लगातार हमला किया| अर्जुन ने कर्ण को जवाब दिया| जल्द ही कर्ण के रथ का पहिया भी फँस गया| अब कर्ण ने अर्जुन को दुहाई दी- “मैं संकट में फँस गया हूँ, मुझ पर हमला बंद कर दो| यह धर्म नहीं है|”

श्री कृष्ण ने उस समय कर्ण से कहा था- “जब भीम को जहर-भरा भोजन दिया गया, जब तुम लोगों ने उनके लिए लाख का घर बनवाया, एकवस्त्रा द्रोपदी को सभा में जब घसीटा गया, जब तेरह वर्ष बीत जाने पर भी पांडवों को उनका राज्य नहीं लौटाया गया, जब अकेले अभिमन्यु पर छह महारथियों ने मिलकर हमला किया, तब तुम लोगों का धर्म कहाँ गया था? अब संकट में पड़ने पर तुम धर्म की दुहाई देते हो|” श्रीकृष्ण की डांट सुनकर कर्ण चुप हो गया| उसने रथ का पहिया निकालने की कोशिश की, परंतु अर्जुन के बाण ने उसकी गर्दन पर सीधा निशाना लगा दिया| इस कहानी हमें यह शिक्षा मिलती है कि धर्म की दुहाई देने से पहले हमें उसका पालन करना चाहिए|

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