देवताओं का विरोध
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देवराज जानते थे कि दो ऋषियों के बीच हुए विवाद में फंसने से कोई लाभ होने वाला नहीं है| वे दोनों महर्षि के स्वभाव से भी भली-भाति परिचित थे| इंद्र भली-भाति जानते थे कि विश्वामित्र के मन में क्यों वशिष्ठ के प्रति ईर्ष्या का भाव है|
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महर्षि वशिष्ठ ने अत्यंत शीत और गंभीर वाणी में विश्वामित्र से कहा, “आप ठीक कहते है! परीक्षा ही व्यक्ति को दृढ़ बनती है| परीक्षा से ही किसी को अपनी योग्यता का ज्ञान होता है| वैसे तो प्रत्येक स्वयं को लोगो के बीच यही सिद्ध करता है की वही योग्य है बस!”
महर्षि के इन वाक्यों का विश्वामित्र पर विपरीत प्रभाव पड़ा| उन्हें लगा, मानो सबकुछ उन्ही को केंद्र में रखकर कहा गया है| महर्षि वशिष्ठ ने आगे कहा, “आप स्वयं परीक्षा लीजिये| सत्य सामने आ जायेगा|” अब विश्वामित्र की सहनशक्ति समाप्त हो गयी थी| वे वहां से उठकर चल दिए|