दयाका फल
बादशाह सुबुक्तगीन पहले बहुत गरीब था| वह एक साधारण सैनिक था| एक दिन वह बंदूक लेकर, घोड़ो पर बैठकर जंगल में शिकार खेलने गया था| उस दिन उसे बहुत दौड़ना और हैरान होना पड़ा| बहुत दूर जाने पर उसे एक हिरनी अपने छोटे बच्चे के साथ दिखायी पड़ी| सुबुक्तगीन ने उसके पीछे घोड़ा दौड़ा दिया|
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हिरनी डर के मारे भागकर एक झील में छिप गयी; लेकिन उसका छोटा बच्चा पीछे छूट गया| सुबुक्तगीन ने हिरनी के बच्चे को पकड़ लिया और उसके पैर बाँधकर घोड़े पर उसे लाद लिया| बहुत ढूँढ़ने पर भी जब उसे हिरनी नहीं मिली तो उस बच्चे को लेकर ही वह लौट पड़ा|
हिरनी ने देखा कि उसके बच्चे को शिकारी बाँधकर लिये जा रहा हैं| वह अपने बच्चे के मोह से झाड़ी से निकल आयी और सुबुक्तगीन के घोड़े के पीछे-पीछे दौड़ने लगी| दूर जाकर सुबुक्तगीन ने पीछे देखा| अपने पीछे हिरनी को दौड़ते देख उसे आश्चर्य हुआ और दया आ गयी| उसने उसके बच्चे के पैर खोलकर घोड़े से उतार दिया| हिरनी प्रसन्न होकर अपने बच्चे को लेकर भाग गयी|
उस दिन घर लौटकर जब रात में सुबुक्तगीन सोया तो उसने एक स्वप्न देखा| उससे कोई देवदूत कह रहा था- ‘सुबुक्तगीन! तूने आज एक गरीब हिरनी पर दया की है, उससे प्रसन्न होकर परमात्मा ने तेरा नाम बादशाहों की सूची में लिख लिया है| तू एक दिन बादशाह बनेगा|’
सुबुक्तगीन का स्वप्न सच्चा था| वह आगे चलकर बादशाह हुआ| एक हिरनी पर दया करने का उसे यह फल मिला| जो जीवों पर दया करता है, उसपर भगवान् अवश्य प्रसन्न होते हैं|