दक्षिणा के साक्षी
जब शिक्षा पूरी हो गयी, तब शिष्यों ने आचार्य से दक्षिणा माँगने के लिए कहा| पहले तो आचार्य ने माँगना न चाहा, किन्तु शिष्यों के बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने कहा, “कोई ऐसी चीज लाओ, जब कोई देखे नहीं|”
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पूर्णिमा के दिन आचार्य के पास सामानों का अम्बार लग गया| सभी शिष्य चर्चा कर रहे थे कि उन्होंने किस प्रकार दूसरों को मुर्ख बनाया और सामान ले आये तथा किसी ने देखा नहीं| किन्तु एक शिष्य खाली हाथ आया था| आचार्य ने पूछा, “जब सभी शिष्य इतने सुन्दर और कीमती सामान लाये है, तब तुम खाली हाथ क्यों आये हो?
शीश नवाकर शिष्य ने उत्तर दिया, “मुझे ऐसा सामान मिला ही नहीं, जब कोई देख नहीं रहा था|”
आचार्य ने पुनः पूछा, “जब इन्हें इतने सामान मिल गये और किसी ने नहीं देखा, तब तुम्हें सामान क्यों नहीं मिले?”
उस शिष्य ने कहा, “गुरुवर! कोई अन्य नहीं देख रहा होता था, तब मै देख रहा था और आपका आदेश था कि कोई न देखे|”
प्रसन्न आचार्य ने घोषणा की कि केवल यही शिष्य सफल हुआ है|