चालाक लोमड़ी
एक बार की बात है| किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी| वह बहुत चालाक थी| एक दिन उस लोमड़ी को बड़ी तेज भूख लगी|
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वह जंगल में भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी परंतु उसे खाने का एक टुकड़ा भी न मिला| थक-हार कर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गयी|
अभी वह बैठी ही थी कि उसकी निगाह पेड़ के ऊपर बैठे कौवे पर पड़ी जो मुँह में रोटी का टुकड़ा लिए बैठा था| रोटी को देखते ही उसके मुँह में पानी आ गया| वह कौवे से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी| अभी वह कुछ सोच ही रही थी कि उसे एक तरकीब सूझी| लोमड़ी ऊपर मुँह करके प्यार से बोली- कौवे भैया| आज तो आप बड़े दिनों में दिखाई दे रहे हो| मैंने आपको न जाने कहाँ-कहाँ ढूँढा, परंतु आप कहीं न मिले| आपको देखकर मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं आपका गाना सुनूँ क्योंकि आपकी आवाज इतनी मधुर है कि मैं अपनी सुध-बुध खो बैठती हूँ, भैया! कृपया अपना गाना सुना दो| आपका बहुत उपकार होगा| कौवा अपनी प्रशंसा सुनकर फूलकर कुप्पा हो गया| जैसे ही उसने गाना गाने के लिए मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया| लोमड़ी ने झट से टुकड़े को उठाया और भाग गयी| कौवा यह सब देखकर अपने ऊपर पछताने लगा| किसी ने ठीक ही कहा है अनावश्यक प्रशंसा घातक होती है|
शिक्षा- झूठी प्रशंसा से खुश नहीं होना चाहिए|