बुराई की जड़ काटो!
किसी नगर में एक आदमी रहता था| उसके आंगन में एक पौधा उग आया| कुछ दिनों बाद वह पौधा बड़ा हो गया और उस पर फल लगे|
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एक दिन एक फल पककर नीचे गिरा| उसे एक कुत्ते ने मुंह में ले लिया देखते-देखते कुत्ते के प्राण निकल गए| आदमी ने सोचा, होगी कोई बात| उसका ध्यान फल की ओर नहीं गया| कुछ समय बाद पड़ोसी का लड़का आया| बढ़िया फल देखकर उसका मन ललचाया| उसने एक फल तोड़ा और जैसे ही दांत से काटा कि उसका दम टूट गया|
अब आदमी ने समझा कि वह विष-वृक्ष है| उसे बड़ा गुस्सा आया| उसने कुल्हाड़ी ली और वृक्ष के सारे फल काट-काटकर गिरा दिए|
लेकिन थोड़े दिन बाद फिर फल उग आए और इस बार पहले से भी बड़े-बड़े फल लगे थे, उसने फिर कुल्हाड़ी उठाई और एक-एक शाखा को काट डाला| न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी! उसने चैन की सांस ली|
परंतु कुछ ही दिन बाद सारा पेड़ फिर लहलहा उठा और फलों से लद गया| आदमी ने सिर पकड़ लिया| अब वह क्या करे? उसके पड़ोसी ने उसकी यह हालत देखी, तो उसके पास आया| बोला – “क्यों क्या बात है? इतने परेशान क्यों हो?”
आदमी ने सारा हाल कह सुनाया| सुनकर पड़ोसी ने कहा – “तुम बड़े भोले हो| तुमने फल तोड़े, शाखाएं काटीं, पर यह नहीं सोचा कि जब तक जड़ रहेगी, पेड़ रहेगा तब तक फल आते रहेंगे| तुम चाहते हो कि इस बला से छुटकारा मिले तो इसकी जड़ को काटो|”
उस आदमी का बोध हुआ| तब उसने समझा कि बुराई की ऊपरी काट-छांट से वह नही मिटती, उसकी जड़ काटनी चाहिए|
उसने कुल्हाड़ी लेकर पेड़ की जड़ को काट दिया और हमेशा के लिए चिंता से मुक्त हो गया|